गुरुवार, 10 मई 2012

उदासीन भाव आत्मसात् करें

इस दुनिया में परमात्मा की बात करने वाले तो बहुत हैं, परन्तु परमात्मा को मानने वाले कम हैं और उनसे भी बहुत कम हैं परमात्मा की बात मानने वाले। एक ओर परमात्मा का नाम लेना और परमात्मा की पूजा करना तथा दूसरी ओर परमात्मा द्वारा निषिद्ध पाप के त्याग का विचार भी नहीं करना, परमात्मा द्वारा धर्म के आचरण की आज्ञा होने पर भी जीवन में धर्म का आचरण नहीं करना; इस तरह से परमात्मा की आज्ञा की अवज्ञा करना, क्या ऐसे व्यक्ति के लिए हम कह सकते हैं कि वह परमात्मा की मानता है? परमात्मा की पूजा करने पर भी जो परमात्मा की आज्ञा की अवगणना करता है, वह वास्तव में परमात्मा का सेवक नहीं है।
जहां परमात्मा की बात मानने वाले कम हों, वहां पर परमात्मा की आज्ञानुसार विचरण करने वाले संसार त्यागी और संसार त्याग का ही उपदेश देने वाले सुसाधु कम हों, यह स्वाभाविक है। आज जो प्रभु की पूजा, गुरु भगवंतों के स्वागत और थोडी-बहुत धर्म क्रियाएं होती हैं, वह सब अधिकांशतः कुलाचार के कारण होती है। सिर्फ आत्म-कल्याण के ध्येय से प्रभु-पूजा, गुरु-सेवा तथा धर्म आराधना करने वाला वर्ग बहुत थोडा है। आपका नम्बर किसमें है? आप स्वयं तय करें। मैं तो चाहता हूं कि आप लोग देव-गुरु-धर्म के सच्चे सेवक बनें। जिसके फलस्वरूप देव-गुरु-धर्म की सेवा आपको फलीभूत हो और इस भव में नहीं तो अगले जन्म में सच्चे संयम को प्राप्त कर कर्म-बंधन से मुक्त बनो।
यह तभी संभव है जब आत्म-हित का भान हो। दुनियावी वस्तुएं चाहे जितनी प्राप्त हो जाएं, परन्तु उससे आत्मा का सच्चा सुख मिलने वाला नहीं है’, इस बात का निर्णय हो जाना चाहिए। आत्मा का सुख, आत्मा को छोड अन्य किसी वस्तु में नहीं है। आत्मा शाश्वत है, आत्मा का सुख भी शाश्वत है। आत्मा पर आवृत्त कर्मों की मलीनता दूर होने पर ही वह सुख मिल सकता है। आत्मा की मलीनता दूर करने के लिए पाप से पीछे हटना चाहिए और धर्म में दृढ बनना चाहिए।
संसार के सम्पूर्ण त्याग का पूर्ण सामर्थ्य न हो तो भी दुनियावी वस्तुओं में सुख है’, इस भ्रम को छोडकर मोक्ष-सुख के अर्थी बनकर यथाशक्य धर्म करो। दुनिया की सभी वस्तुएं आत्मा से भिन्न हैं। पर-वस्तुओं के साथ आत्मा का संबंध ही सच्चे सुख की प्राप्ति में बाधक है।यह बात हृदय में जच जाए तो भी व्यक्ति संसार में रह कर उदासीन-भाव पा सकता है। यह भाव आ जाए तो दुःख के संयोगों में भी आत्मा समाधिभाव में रह सकती है। भयंकर दुःखों में भी धर्म से सच्ची शान्ति मिल सकती है और अनेक अनुकूलताओं के बीच भी पापोदय व्यक्ति को दुःखी कर सकता है। अतः देव-गुरु-धर्म के सच्चे उपासक बनो ताकि आत्मा का अहित टल जाए और कल्याण हो जाए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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