जिनका जन्म हुआ, उनका मरना निश्चित है। मरण के बाद जन्म
नियम से होता ही हो,
ऐसा नहीं है। जो-जो मरते हैं, वे-वे जन्म लेते हैं, ऐसा एकान्त
नियम नहीं है। किन्तु जो-जो जन्मते हैं, वे मरण प्राप्त किए बिना नहीं
ही रहते, यह तो निश्चित ही है। अनंतकाल में अनंत आत्माओं ने मरण के बाद वापस जन्म नहीं
लिया, ऐसा हुआ है। किन्तु अनंतकाल में एक भी आत्मा ऐसा नहीं जन्मा कि जो वापस मरा
नहीं हो। मृत्यु के साथ जन्म यह एकान्त नियम नहीं है, किन्तु
जन्म के साथ मुत्यु यह एकान्त सत्य है। यहां से मरकर श्री सिद्धगति को प्राप्त
आत्माएं यानी मोक्ष में जाने वाली आत्माएं पुनः जन्म नहीं लेतीं। जो जन्म लेगा, उसकी
मृत्यु निश्चित है।
आप मरोगे या नहीं?
आज जिस शरीर का आप संस्कार करते हैं, बारम्बार
साफ किया करते हैं,
जिसके ऊपर अत्यंत मोह रखते हैं, वह
एक दिन अग्नि में भस्मीभूत हो जाएगा, ऐसा आपको लगता है? शरीर
यहां रहेगा और आपको अपने कर्मों के साथ किसी अन्यत्र स्थान पर जाना पडेगा, ऐसा
लगता है? आपका सर्वाधिक प्रिय स्नेही आपके शरीर को मोटी-मोटी लकड़ियों पर सज्जित करेगा, आपके
शरीर पर बडे-बडे लकडे रखेगा और उसके बाद उसमें आग लगा देगा, इतना
ही नहीं आपका शरीर जल्दी से जल्दी भस्मीभूत हो इसके लिए वह आग में घी और डालेगा, राल
फेंकेगा ताकि जल्दी से जल्दी आग पकडे और दाह-संस्कार फटाफट हो, ऐसा
आपको लगता है?
लोगों को मरते हुए या उनके शव के दाह संस्कार को तो आपने आपकी जिन्दगी में कई
बार अवश्य देखा होगा। कभी आपको लगा कि एक दिन मेरे शरीर की भी यही हालत होनी है? किसी
के अंतिम संस्कार के लिए,
किसी को जलाने के लिए श्मशान गए हो, तब
कभी आपको ऐसा लगा कि इस प्रकार से किसी दिन मेरे शरीर को भी स्नेहीगण, संबंधीगण, पडौसी
आदि ले जाएंगे और मेरा खून ही मेरे शरीर को आग लगा देगा? धन-सम्पत्ति
कुछ भी साथ नहीं लेजा सकोगे।
आपको यह निश्चित हो कि मेरा यह शरीर अमर रहने वाला है तो बोलो..! किन्तु भयंकर से भयंकर पापात्माएं भी अंतिम कोटि के नास्तिक होने पर भी
यह बात तो अंत में जानते हैं कि एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि जिस दिन इस शरीर को कोई
संग्रह करने वाला नहीं है। या तो जला देंगे या तो दफनाकर छोड देंगे। मानो कि अशुभ
के योग से जो कोई ऐसे स्थान में मरे हों तो जंगल में पशु-पक्षी, चील-कौए
उसका भक्षण करेंगे। समुद्र इत्यादि में फेंक देंगे, किन्तु शरीर के लिए
ऐसा कुछ न कुछ होने वाला ही है, यह निश्चित बात है। तो फिर संसार में
संसार को और बढाने की लालसा या हायतौबा क्यों, राग-द्वेष, छल-कपट किसके लिए....? -सूरिरामचन्द्र
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