शनिवार, 12 मार्च 2016

कायरता से समाज सड़ता है


आज अधिकांश लोग धर्मशासन में पसर रही शीथिलता, मनमानी और दुराचार के प्रति उदासीनता दिखाते हुए अक्सर कह देते हैं कि यह तो पांचवां आरा है और भगवान ने भी कहा है कि इस आरे में धर्म का हृास होने ही वाला है, आचार-विचार में शीथिलाचार की कोई सीमा नहीं होगी, इसलिए कुछ भी कहने-सुनने या करने का कोई फायदा नहीं है। यह दुष्प्रचार है और अपनी अकर्मण्यता छिपाने का बहाना है। प्रभु ने ऐसा एकांत रूप से कहीं नहीं कहा है।

अभी पांचवें आरे के 18 हजार से ज्यादा वर्ष बाकी हैं और प्रभु ने यह फरमाया है कि पांचवें आरे के अंत तक श्रमण संस्कृति की धारा अपने शुद्ध स्वरूप में अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित होती रहेगी। पतन होगा, किन्तु क्रान्तियां होगी और उत्थान भी अवश्यमेव साथ-साथ होता रहेगा। श्रमण संस्कृति की धारा अपने उत्कृष्ट स्वरूप में प्रवाहित होती रहेगी, भले ही भीड छंटती जाए। यहां संख्या बल का महत्व नहीं है, सिर्फ चारित्र का महत्व है।

इसलिए कुंए में भांग घोलने की कोशिश न करें।
चलने दो, अपने को क्या करना है’, ऐसे मंद विचारों और लापरवाही, कायरता से समाज सड जाता है और फिर सडे हुए समाज में हृदय को हर्ष या तृप्ति नहीं मिलती, आत्मकल्याण का मार्ग निष्कंटक नहीं रह जाता, समाज शोषित हुआ चला जाता है। खेत के पाक को पूर्ण रीति से फलने देने के लिए पास ही उत्पन्न हुए कचरे का नाश करना ही चाहिए। फसल अच्छी हो इसके लिए खरपतवार को तो नष्ट करना ही पडता है। आप लोग धर्म-विरूद्ध प्रवृत्तियों को रोक नहीं सकते, इसी कारण तो हमें विरोध का झण्डा उठाना पडता है।

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