बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

हम कहां जा रहे हैं?

मैं यहां किसी दलविशेष की बात नहीं कर रहा हूं। लेकिन, यह आज की कडवी सच्चाई है कि देश का सबसे बडा संकट भ्रष्ट और चरित्रहीन नेतृत्व है; फिर भी यहां की जनता इन भ्रष्ट नेताओं का विरोध करने की बजाय उनके तलवे चाटने में लगी है। देश की प्रति व्यक्ति आय बहुत नीचे है, पर यहां के अधिकारी और कर्मचारी मेहनत व ईमानदारी से काम करने की बजाय दबाव डालकर अपनी मांगों को मनवाने में लगे हैं या भ्रष्ट उपायों द्वारा धनार्जन करने में जुटे हैं। यहां के राजनीतिबाजों की वैचारिक प्रौढता केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए दलबदल करने, नए राजनीतिक गठजोड बनाने, विदेशों की सैर करने या दलों में जोडतोड करने तक सीमित है।
जहां तक राष्ट्रीय चरित्र का प्रश्न है उद्योगपति से लेकर साधारण श्रमिक तक, प्रधानमंत्री से लेकर गांव के चौकीदार तक, विश्वविद्यालय के कुलपति से लेकर साधारण अध्यापक तक प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की सिद्धि में लगा है। बात राष्ट्र की करते हैं, किन्तु राष्ट्रहित की चिन्ता किसी को नहीं है।
आज समाज में श्रम का आदर खत्म होने के साथ-साथ ऐसे जीवन मूल्यों की स्थापना हो गई है, जिनमें श्रम और ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने के स्थान पर निकम्मे, अन्यायी, चालाक, भ्रष्टाचार व हेराफेरी से धनवान बने हुए लोग ही समाज के नेता व आदर के पात्र हो गए हैं। आज के जीवन आदर्शों के अनुसार अदालत में झूठ बोलना झूठ नहीं है, राजनीति में झूठ बोलना झूठ नहीं है, व्यापार में झूठ बोलना झूठ नहीं है; तो फिर झूठ कहां है? यदि अदालत में झूठ झूठ नहीं है तो न्याय की आशा कैसे की जा सकती है? यदि राजनीति को यह कहकर टाल दिया जाए कि राजनीति में सब चलता है तो प्रजातंत्र, सामाजिक न्याय, समानता, कुशल चरित्रवान नेतृत्व कहां से आएगा? यदि व्यापार में झूठ बोलना, चोरी करना, रिश्वत लेना या देना और मिलावट आदि करना सामाजिक रूप से मान्य व्यवहार बन जाएगा तो राष्ट्रीय चरित्र का प्रश्न ही कैसा?
लोग मोक्ष या स्वर्ग में जाने अथवा अधिक पाने के लोभ से मंदिर जाते हैं, तिलक लगाते हैं, किन्तु अपनी दुकान या कार्यालय में आ जाते हैं तो यदि दुकानदार हैं तो शाम तक निर्भीक होकर खाद्य पदार्थों में मिलावट करते हैं, यदि दवा विक्रेता हैं तो दवाइयों में मिलावट करते हैं, यदि ठेकेदार हैं तो सीमेंट, लोहे व अन्य पदार्थों में हेराफेरी करते हैं, यहां तक कि राष्ट्र की सुरक्षा के निर्माण कार्यों में भी धोखा करने से नहीं हिचकिचाते, यदि सरकारी अधिकारी हैं तो खुलकर रिश्वत लेते हैं, अध्यापक हैं तो या तो पाठ्यपुस्तकों के धंधे में लगे रहते हैं अथवा घरों पर ट्यूशन पढाते हैं, डॉक्टर हैं तो सेवा का नहीं लूट का धंधा करते हैं और फिर यही वे लोग हैं जो समाज में धनी होने के कारण बडे लोग कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो अपवादों को छोडकर आज भारतवासी विश्वभर में सबसे अधिक कामचोर, सबसे अधिक स्वार्थी, सबसे अधिक प्रपंची, सबसे अधिक चरित्रहीन हो गए हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह बहुत ही गंभीर लांछन है, इस आर्यदेश व आर्य संस्कृति के लिए।
पतन की इस परिस्थिति में सबसे दुःखद बात यह है कि आज के नेता नए मूल्यों और नए समाज की स्थापना के बजाय समाज के नैतिक पतन का अनुचित लाभ उठा रहे हैं। इस प्रकार वे पतन की प्रक्रिया को और आगे बढा रहे हैं।

सोचिए जरा कि हम कहां जा रहे हैं? आज आवश्यकता इस बात की है कि समाज का अग्रणीय वर्ग श्रम की महत्ता को समझे और नैतिक मूल्यों की स्थापना करे।

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