मंगलवार, 22 अगस्त 2017

जैन समाज में बढता मिथ्यात्व दुर्भाग्यपूर्ण

आजकल नाकोडा भैरव की पूजा मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान से भी अधिक प्रचलित होने लगी है, जबकि भैरव तीर्थंकर भगवान की सेवा में रहने वाले एक देव मात्र हैं। एक सम्यग्दृष्टि देव होने के नाते उन्हें नमन अथवा उनका गुणानुवाद ठीक है, लेकिन उन्हें अपने व्यवसाय में भागीदार बनाना दोषपूर्ण और महामूर्खता है, मिथ्यात्व है। इससे आपका सम्यक्त्व नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है।
आजकल नाकोडाजी की भक्ति के नाम पर भक्ति-संध्या के आयोजनों अथवा भेरूजी की आरती के समय अथवा कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा परोक्ष व्यापार की दृष्टि से नाकोडाजी की भक्ति के नाम पर शरीर में भेरूजी का आना और पछाडे खाना (ओतरना, भाव आना), शरीर को मरोडना-पटकना; यह सब एक नया सिलसिला चला है। यह महामूर्खता और महामिथ्यात्व का चरम है। आज किसी के शरीर में भेरूजी आ रहे हैं, कल पद्मावतीजी आएंगे और फिर भगवान भी आ जाएं तो क्या आश्चर्य...!
यह समझना चाहिए कि भेरूजी एक सम्यग्दृष्टि देव हैं, वे किसी के शरीर में नहीं ही आ सकते हैं। ये देवरे वाले भेरूजी नहीं हैं, जिन्हें आप शादी-ब्याह में पूजते हैं। यदि आप वाकई जैनी हैं और जैनी होने का गर्व है तो इसे समझना चाहिए और इस मिथ्यात्व से दूर रहना चाहिए। दुःख है कि कई मंदिरों में यह तमाशा होने लगा है जो अत्यंत दुःखद है। महिलाएं वहीं नतमष्तक होना शुरू हो जाती हैं, कुछ सोचती नहीं। कई भोले लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं।

बहुत विस्तार से यहां लिखना संभव नहीं है, लेकिन समझदार जैनियों को इस प्रवृति पर तुरंत अंकुश लगाना चाहिए। यह धर्म को बेच खाने जैसा है, महापाप है। जो लोग भेरूजी आने का दावा करते हैं, वे मनोरोगी हैं, उनके जीवन के फ्रस्ट्रेशन को देखिए, यह हिस्टिरिया है।

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