अभी हमारी मैत्री जड पदार्थों के साथ है। जड पदार्थ ही हमें संसार में बांधे
हुए हैं। जड पदार्थों के प्रति हमारी आसक्ति होती है और आसक्ति के कारण जन्म-मरण
होता है। हम बार-बार संसार में जन्म लेते हैं। जन्म-मरण का मूल आधार क्या है? पदार्थों
के प्रति हमारा राग-भाव। यह राग-भाव ही हमारे भीतर आसक्ति पैदा करता है। बन्धन का
कारण क्या है?
बन्धन का कारण भी यह राग-भाव ही है। हमारे भीतर जिस किसी के
प्रति आसक्ति रह जाती है,
उस रूप में हमारा जन्म पुनः हो जाता है। और यह जन्म-मरण का
चक्र अनवरत चलता रहता है। राग-भाव से मुक्त हुए बिना जन्म-मरण से छुटकारा नहीं हो
सकता। यदि आप इस जन्म-मरण के चक्र से सर्वथा-सर्वदा के लिए मुक्त होना चाहते हैं, तो
कोई भी क्रिया करने से पहले इतना जरूर विचार करिए कि मैं क्या कर रहा हूं? किसके
लिए और क्यों कर रहा हूं?
क्या जीवन का यही उद्देश्य है? यदि
आप मुक्त होना चाहते हैं तो इसी चिंतन से आगे की राह निकलेगी।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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