प्राणी मात्र का
कल्याण चाहना, किसी के उत्तम गुण को देखकर प्रमुदित होना, दुःखी के प्रति
दया-भाव रखना और अपराधी को सुधारने के लिए परिश्रम करने पर भी यदि न सुधरे तो उसके
प्रति उदासीन हो जाना, लेकिन उसका तिरस्कार तो नहीं ही करना। जिसमें यह
उदारता नहीं है, उसमें सदाचार, सहिष्णुता और उत्तम
विचार आएंगे? नहीं आएंगे! आपको ऐसा उदार, सदाचारी, सहिष्णु और सद्विचार
वाला बनना है? इन गुणों को प्राप्त कर के महान बनना है न? यदि हो, तो इस उदारता को
प्राप्त कर के जीवन में उतारने के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए।
आपको पूर्व के किसी
प्रबल पुण्य से यह उत्तम भव, उत्तम देश और उत्तम जाति प्राप्त हुई है। यह सामग्री
जिसका सदुपयोग हो सके तो उत्तम प्रकार से मोक्ष-मार्ग की आराधना हो सकती है। यह
सामग्री प्राप्त कर के आप यदि मोक्ष-मार्ग की आराधना करने में असफल रहें, मोक्ष प्राप्ति के
लिए तनिक भी प्रयत्न-पुरुषार्थ न कर सको, प्रयत्न-पुरुषार्थ न
कर सको और उसका पश्चात्ताप भी न हो तो यह मिली हुई सब सामग्री निष्फल हो जाएगी।
ज्ञानी पुरुषों द्वारा बताई गई क्रिया से सर्वथा विमुख रहकर यदि केवल विपरीत
क्रियाओं में ही इन उत्तम सामग्रियों का दुरुपयोग हो तो अपने ही हाथों अपना जीवन
नष्ट करने के समान होगा।
अतः ज्ञानी पुरुषों
के फरमाने के अनुसार मेरी आपको शिक्षा है-सलाह है कि यदि अधिक न हो सके तो इतना तो
करना ही कि जिससे आराधना करने योग्य जो सामग्री प्राप्त हुई है, वह चली नहीं जाए, अपितु टिकी रहे, जिससे भविष्य में भी
आत्मा अधिक आराधना कर सकेगी, परन्तु यदि विपरीत प्रवृत्तियों में ही जीवन में उलझ
गए तो इतनी सामग्री पुनः कब प्राप्त होगी, यह कहा नहीं जा
सकता। इसके लिए ‘सच्ची उदारता’ प्राप्त करने का सदा प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य
में यह गुण आ जाएगा, वह अपना और पराया हित कर सकेगा। ऐसी आत्मा यदि सोच
लेगी तो वह जैन शासन की भी अच्छी तरह प्रभावना कर सकेगी। हमने ऐसा अनुपम शासन
प्राप्त किया है तो अपना बर्ताव ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिससे शासन पर कलंक लगे।
हमें ऐसा जीवन जीना
चाहिए कि जिससे शासन की शोभा में वृद्धि हो। देखने वाले को ऐसा लगे कि ‘यह जिस धर्म को
मानता है, वह धर्म उत्तम ही होगा’। ऐसी छाप उदारता का
गुण आए बिना नहीं पड सकती। हम कदाचित् देव-गुरु-धर्म की भक्ति बराबर न कर सकें तो
भी हम उन तारकों और उनके धर्म की निन्दा न हो, इसकी सावधानी तो रख
ही सकते हैं। जो आत्मा जीवन में सच्ची उदारता प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगी और
अनन्त ज्ञानियों की आज्ञानुसार आराधना करेंगी, वे आत्माएं इस
भव-सागर को अवश्य पर करेंगी।-सूरिरामचन्द्र
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