एक सझदार व्यक्ति पाप करता है और एक व्यक्ति जो पाप
को पाप जानता ही नहीं, पाप
को पाप समझता ही नहीं है, वह
भी पाप करता है। अब पाप किसको ज्यादा लगेगा? एक तो अज्ञानता में पाप करता है, एक ज्ञान में पाप करता है। सामान्य
दृष्टि से यही माना जाता है कि भला जानबूझकर जो इतना बडा पाप कर रहा है, जानबूझकर जो जहर खा रहा है तो
मरेगा ही। तो क्या बिना जाने जहर खाने वाला व्यक्ति जहर से नहीं मरेगा? मरेगा तो वह भी, लेकिन जो जान बूझकर पाप कर रहा है, उसके मन में जागृति है कि मैं
कितनी मजबूरी के कारण, परवशता
के कारण यह पाप कर रहा हूँ। इस पाप से मैं कब मुक्त बनूँगा? इसके कारण मुझे कितने कर्म-बन्धन
करने पड रहे हैं?
उसका पश्चाताप पूर्वक चिन्तन चलता रहता है। लेकिन, जो व्यक्ति अज्ञानता पूर्वक पाप
करता है, वह पाप में रचा-पचा होता
है। पाप में आसक्त होकर वह पाप कार्य करता है। दूसरी बात यह है कि उसने ज्ञान
प्राप्त नहीं किया। वह भी तो उसके जीवन का एक बहुत बडा पाप है। क्योंकि उसने अपने
जीवन में जीव-अजीव का, पुण्य-पाप
का, जड-चेतन का ज्ञान
प्राप्त किया ही नहीं। और जीवन भर यह कहकर पाप करता रहा कि मुझे तो मालूम हीं नहीं
है कि यह पाप है? तुम
अज्ञानी बने रहो और जीवन भर पाप करते रहो, यह भी तो जीवन का सबसे बडा पाप है।
तो यह जो एक धारणा है कि जानबूझकर पाप करने वाले को
अधिक पाप लगता है, ऐसा
नहीं है। यह धारणा गलत है। जानबूझकर पाप करने वाले के मन में तो पश्चाताप की भावना
है। एक संसार में अनासक्त भाव से रहता है कि संसार में बैठा हूं, इसलिए निर्वहन के लिए मुझे यह सब
करना पड रहा है, मेरे
लिए वह दिन धन्य होगा, जब
मैं इससे मुक्त हो सकूंगा। दूसरा संसार में आसक्त होकर, मस्त होकर, बिना किसी पछतावे के पाप कर रहा है, उसे किसी प्रकार की चिन्ता ही नहीं है। एक तो वह व्यक्ति पाप कर रहा है, जो जानकार है कि यह दवाई छिडकने से
कितनी जीव हिंसा होगी? कितने
जीवों की विराधना होगी? इन
सबका पाप भी लगेगा। उस समय मन में पश्चाताप की भावना भी उठेगी। पाप के प्रति
आसक्ति या लगाव नहीं होगा।
एक आपका नौकर है, वह यदि आप के घर की सफाई कर रहा है, तो उसके मन में पश्चाताप होगा क्या? वहाँ पश्चाताप नहीं होता है, क्योंकि उसे जीव-अजीव का ज्ञान ही
नहीं है। जानकार है, तो
मन में पश्चाताप करता है कि क्या करें, घर में जीव-जन्तु इतने बढ गए कि किसी तरह जाते ही नहीं हैं। इनकी सफाई करने के
लिए हमें विवश होकर दवाई छिडकनी पडती है। जिसे पश्चाताप है, उसे पाप कम लगेगा और जो अज्ञानी है, उसे पाप अधिक लगेगा।-सूरिरामचन्द्र
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