आज
समाज में संस्कारों की कितनी कमी होती जा रही है? आजकल के माता-पिता को फुर्सत नहीं है कि वे आधा
घंटा भी अपने बच्चों के पास बैठकर उन्हें धर्म की शिक्षा दें, समझाएं, अच्छे
संस्कार दें। आजकल के माता-पिता तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के नाम पर
कान्वेन्ट में डाल देते हैं। आप सोचते हैं कि कान्वेन्ट (अंग्रेजी ढंग का बाल
विद्यालय) में पढने जाएगा तो हमारा बच्चा इन्टेलीजेन्ट (चतुर) बनेगा। पढ-लिखकर
होशियार बन जाएगा और आगे चलकर बडा आदमी बन जाएगा। वहां जो शिक्षा परोसी जाती है, उसमें
आत्मा कहां है?
वहां तो जहर ही जहर है। संसार में बिगडने, भटकने
के साधन बढते जा रहे हैं और धार्मिक संस्कारों के साधन घटते जा रहे हैं। ये सब
आपने विचार नहीं किया। आप उसे कितना ही सम्हाल कर रखिए, लेकिन
जब बचपन से ही बच्चा ऐसे माहौल में पलता है, पढता है, जो सीखता है, उसमें वे संस्कार आएंगे ही। एक बार उसमें हमारी
संस्कृति के विपरीत संस्कार भर गए तो वह आपसे लुक-छिप कर अण्डा खाएगा, मांस
खाएगा,
शराब पिएगा। आप कहाँ देखेंगें, आपको
इतनी फुर्सत है?
आजकल
के बच्चे बीडी-सिगरेट पीते हैं? बच्चों में ये संस्कार कहां से आए? सिगरेट
तो पिताजी पीएंगे। पैकेट (डिब्बा) बाजार से बच्चे को लाने के लिए भेजते हैं। बच्चा
देखता है कि पिताजी रोजाना बीडी-सिगरेट पीते हैं। देखता है तो नकल करता है। उसमें
ये आदत शुरू हो जाती है। जैनियों की सन्तानें कहां जा रही है? क्या
हमारी जैन परम्पराएँ है और आजकल के लडके क्या कर रहे हैं? मांस, अण्डा, शराब
जीवन के अंग-सम बन गए हैं। जैन-अजैन में कोई फर्क नहीं रह गया है।
कई
जैनियों के जीवन में इतनी विद्रूपता है कि यहाँ आकर तो वे धार्मिक क्रियाएँ करते
हैं,
धर्म-साधना करते हैं और घर जाकर मांस पकाते हैं। मांस
खाते हैं। शराब पीते हैं। ये वृत्तियाँ जीवन में बढती जा रही हैं। आज पक्के जैनत्व
के संस्कार कहाँ हैं? आज बच्चों को जैनत्व के संस्कार नहीं दिए जा रहे हैं।
अगर बच्चों में संस्कार डाले जाएं तो बच्चा क्या से क्या बन सकता है।
वह
माता शत्रु के समान है, जिसने अपने बालक को संस्कारित नहीं किया। वह पिता
वेरी के समान है, जिसने अपने बच्चे को संस्कार नहीं दिए। कितने
माता-पिता हैं,
ऐसे जो कम से कम आधा घण्टा बैठ कर अपनी सन्तानों को
धार्मिक-नैतिक संस्कार देते हैं? आज इसकी महति जरूरत है। पूरे जैन समाज से यह बहुत बडी
अपेक्षा है कि बच्चों को संस्कार सम्पन्न बनाने के लिए प्रयास किए जाएं। इसके लिए
समाज में आज संस्कार-क्रान्ति की आवश्यकता है। -आ.
श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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