अब
से लगभग आठ दशक पूर्व देश में सर्वत्र आजादी-स्वतंत्रता के नारे गूंज रहे थे।
गांधीजी ने ‘हिन्द-स्वराज’ पुस्तक में लिखा था कि ‘संसदीय प्रणाली की लोकशाही तो वैश्या व वंध्या जैसी है, हिन्दुस्तान यदि उस प्रवाह में बह गया तो बर्बाद हो जाएगा।’ लेकिन,
गांधीजी स्वयं भी लोकशाही के प्रवाह में बह गए। उस समय
व्याख्यान वाचस्पति पूज्यपाद आचार्य भगवन श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
ने अपनी दूरदृष्टि से इस लोकशाही, चुनाव-पद्धति तथा बहुमतीवाद
का प्रचण्ड विरोध किया था। पूज्यश्री ने कहा- ‘इस
चुनाव-पद्धति से गुण्डाशाही को प्रोत्साहन मिलेगा, गांव-गांव
में कलह-क्लेश खडे हो जाएंगे, जातिवादी मानसिकता से भाईचारा
खत्म हो जाएगा,
धन का भयंकर दुर्व्यय होगा, सज्जनों
के बजाए दुर्जनों का बोलबाला बढेगा।’
उन
महापुरुष की भविष्यवाणी आज सत्य सिद्ध होती दिखाई दे रही है।
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