शनिवार, 21 जून 2014

धर्म सदैव साथ होना चाहिए


आज धर्म करने वालों ने भी धर्म को प्रायः अवसरवादी बना दिया है। धर्म करने वालों में ऐसे भी हैं, जिनके हृदय में धर्म वास्तव में बसा ही नहीं है। आज साधु की भी अच्छी बात सुनने के लिए कितनों के पास समय है? सुसाधु के पैर छूने के लिए कभी गए हो? क्या आपने सुसाधु की चिन्ता की है? यद्यपि सुसाधु अपने धर्म के बल पर जीते हैं, न कि किसी की कृपा पर। लेकिन, आपका कर्त्तव्य क्या है? आज अधिकांश लोग वास्तव में धर्म नहीं, धर्म का दिखावा मात्र करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि धर्म करेंगे तो दुनिया में अपना काम चलेगा, यह वृत्ति आज आप लोगों में बहुत बढ गई है, इसलिए धर्म का दिखावा चल रहा है। ऐसे कम ही लोग हैं, जिनके हृदय में वास्तव में धर्म का निवास है। जिसमें कोई खामी न हो, किसी की जरूरत न हो, इस तरह दुनिया के सुख में लीन रहने की बुद्धि से, धर्मदर्शक आत्माओं की परवाह किए बिना, केवल धर्माचरण का दिखावा करे और उसमें होने वाली गलतियों को गलती के रूप में समझते हुए भी उन्हें पाल रखे और इसके बावजूद भी वह धर्म वास्तव में हमें सहायक बनकर उन्नति प्रदान करे; यदि ऐसी आशा आप रखते हैं तो यह व्यर्थ है। हमें ऐसे धर्म की जरूरत है जो जीवन में हर पल, हर क्षण साथ रहे। कुछ स्थानों या समय पर ही धर्म हो, ऐसा नहीं। धर्म तो जीवन में सर्वत्र और हर पल होना चाहिए। आप पेढी पर बैठे हों, बाजार में व्यवसाय करते समय कोई सौदा कर रहे हों, अपने मित्रों के साथ बातचीत कर रहे हों या आनंद-प्रमोद की कोई क्रियाएं करते हों, इन सभी अवसरों पर धर्म आपके साथ होना चाहिए। इतना ही नहीं, आप खाते-पीते हों, उठते-बैठते हों, बातचीत करते हों या कहीं घूमते-फिरते हों, सब काल और सब काम में धर्म होना आवश्यक है।

इस तरह हर समय धर्म साथ में रहने से किसी भी काम के समय आपको विचार आएगा कि मैं जो प्रवृत्ति कर रहा हूं, वह किसी को भी प्रतिकूल तो नहीं है न? किसी की प्रतिकूलता मेरी अनुकूलता नहीं बननी चाहिए या किसी की अनुकूलता खत्म करके, मुझे अनुकूलता नहीं चाहिए।यह विचार आपको तभी आएगा, जब आपकी आत्मा सच्ची विवेकी और जागृत बनेगी। आपको सोचना चाहिए कि दूसरों की अनुकूलता छीनने का मुझे क्या हक है? यदि ऐसा नहीं सोचेंगे तो आपकी आत्मा हर पल, हर क्षण पाप करने का मौका मिलते ही कोई न कोई पाप अवश्य करेगी। आप बाजार में व्यापारी के रूप में घूम रहे हैं, लेकिन आप उद्योग-धंधे में कितनी अनीतियां करते हैं? क्या आप वास्तव में समाज में प्रतिष्ठा के लायक हैं? आज की दशा ऐसी है कि सब एक समान हो गए हैं, कौन किसको ताना मारेगा? इसका कारण यह है कि आपने धर्म को पकडा नहीं और दूसरी ही वस्तुओं के गुलाम हो गए हैं। यदि आपने धर्म को अपना साथी बनाया होता तो पौद्गलिक सुख के आप इतने बडे शौकिन नहीं बनते और आपकी मनुष्यता भी इतनी धूमिल नहीं होती। - आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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