सोमवार, 28 जुलाई 2014

धर्मी की समझ उसे सतत जागृत रखती है


हम आपको सहलाने या बहलाने के लिए पाट पर नहीं बैठते, अपितु आपको चेताने के लिए पाट पर बैठते हैं। नहीं चेतोगे तो नहीं जाने कहां फेंक दिए जाओगे? यह संसार बहुत लम्बा-चौडा है।

दुनिया बिना पैसे वालों पर दया खाती है, परन्तु मुझे पैसे वालों पर दया आती है कि उनकी क्या दशा होगी?

सुख के लोभ से आज कुछ कम खराबियां पैदा नहीं हुई है। बडे गिने जाने वाले लोग आज पैसे के पीछे मरने-मारने को तैयार हैं और पैसे से वे खरीदे जा सकते हैं। यह है उनकी स्थिति!

दुःख को सहन करना सीखना भी धर्म है। दुःख को निकालने का प्रयास करने से दुःख जाता नहीं है। कदाचित् चला जाए तो वापस आएगा ही। लेनदार आए और उसे आप धकेल दो तो भी वह पांचवें दिन फिर आएगा ही। शक्ति वाला तो देना चुकाकर ही उसे वापस भेजता है, जिससे दुबारा उसका मुंह न देखना पडे। इसी तरह शक्ति हो तो दुःख को सहन कर ही लेना चाहिए।

सुख आशीर्वाद नहीं, वह तो अभिशाप है। कर्मराजा जिसे दुर्गति में डालकर दुःखी करना चाहता है, उसे वह पहले सुख में सुला देता है।

शक्ति होने पर भी दुःख सहन न करना और सुख की सामग्री मिले तो आवश्यकता न होने पर भी उसका उपयोग करना, इतना ही नहीं; अपितु पाप करके भी उस सामग्री को प्राप्त करना, ऐसी स्थिति में धर्म हममें प्रवेश कैसे कर सकता है?

धर्म की बात में कर्म को आगे लाए, वह जैन नहीं। कर्म से तो संघर्ष करना है। कर्म को ढाल बनाने वालों का तो कर्म ने सत्यानाश ही कर डाला है। कर्म आज्ञा दे, तब धर्म करने की बात करने वाले कायर लोग कभी धर्म का आचरण नहीं कर सकते। समझदार वह है जो दुनिया की बातें कर्म पर छोडता है और धर्म की बात में पुरुषार्थ को आगे करता है। इस जन्म में धर्म की बात में समझ (विवेक) प्राप्त करना बडे से बडा धर्म है। कर्म संसार में भटकाने वाला है और धर्म संसार से तारने वाला है।

समझ ऐसी चीज है कि यदि उसे निकाली न जाए तो वह सतत साथ में बनी रहती है। व्यापार नुकसान में चल रहा हो तो व्यापारी के मन में सतत यह बात चलती रहती है कि व्यापार नुकसान में चल रहा है। भले ही वह यह बात मुँह पर नहीं लाता और सदा की तरह प्रवृत्ति करता रहता है, परन्तु हृदय में तो सतत चिन्ता चालू रहती है। इसी तरह सुख में या दुःख में धर्मी की समझ उसे सतत जागृत रखती है। धर्मी जीवन के हर व्यवहार में धर्म को आगे रखता है और सारे व्यवहार इस विवेक के साथ करता है कि उसके धर्म पर कहीं कोई आँच नहीं आए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें