शनिवार, 12 सितंबर 2015

शिवसैनिक के भेष में औरंगजेबी गुण्डे



कल शिवसेना के गुंडों ने मुम्बई के नवापाड़ा में जिस प्रकार जैन स्थानक के बाहर मांस पकाकर खाया और जिस वीभत्स तरीके से मांस के लोथड़ों का प्रदर्शन किया वह बेहद शर्मनाक है और जैनियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। इसी प्रकार जैनियों की दुकानों व घरों में अंडे-मांस आदि फेंककर उत्पात मचाया है, वह बेहद दुखद है। सरकार को ऐसे गुंडों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए।

उद्धव और राजठाकरे के गुंडों की इस हरकत को देखते हुए तो अब शिवसेना का नाम बदलकर ओरंगजेब सेना रख लेना चाहिए, क्योंकि इन्होंने ओरंगजेब के इतिहास को ही दोहराया है। ये छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज तो नहीं ही हो सकते, इन्हें बालासाहब ठाकरे के वंशज कहने में भी आपत्ति है, क्योंकि इन्होंने तो अपने बाप के सोच और सिद्धांतों पर ही कालिख पोत दी है।

कल की इस घटिया हरकत के बाद भी यदि कोई इस ओरंगजेबीया फौज में रहता है या इन्हें कोई आर्थिक मदद देता है तो कम से कम वह किसी जैन की संतान तो नहीं ही हो सकता।

इसके साथ ही जैनियों को भी तुरंत प्रभाव से अपना अंतरावलोकन शुरू करना चाहिए कि आखिर एक के बाद एक उसके धर्म पर हमले की घटनाएं क्यों हो रही है और ये घटनाएं भविष्य के लिए क्या संकेत कर रही है? 8 मई, 2015 को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा जैनियों के दीक्षा धर्म पर प्रहार, 10 अगस्त, 2015 को राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा आत्मकल्याण की साधना संथारे को अपराध करार देना और अब जैनियों के सबसे बड़े आत्मशुद्धि के महापर्व के दौरान इस प्रकार की घृणित एवं वीभत्स कार्यवाही भविष्य में कैसी परिस्थितियों का निर्माण करेगी?

इससे पूर्व महाराष्ट्र के ही मनमाड में अक्षय तृतिया के पारणों के अवसर पर पाण्डाल को आग लगा देने व महिलाओं के साथ लूटपाट करने की घटना हो चुकी है।

यह वक्त है संभलने और सावधान होने का!

कुछ लोगों की दिगंबर साधुओं पर वक्र दृष्टि है तो कुछ लोगों की नजर मंदिरों की संपत्ति और देवद्रव्य पर भी है। कुछ लोग अनोप मंडल जैसे आपराधिक मानसिकता के लोगों को उकसाने में भी लगे हैं। यह सब चिंता का विषय है।

इन सबसे अधिक चिंता का विषय है हमारे ही राह भटके जैन कुल में जन्म लेकर उसी कुल के गौरव को अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए नष्ट-भ्रष्ट करने वाले लोग।

जैन धर्माचार्यों को और समाज के प्रमुखों को बहुत ही गंभीरता पूर्वक अपने छोटे छोटे मतभेदों और आपसी ईर्ष्या को छोड़कर सभी मुद्दों पर चिंतन कर समाज का मार्गदर्शन करना चाहिए।

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