शनिवार, 13 अगस्त 2016

उन्मार्ग का उन्मूलन/सन्मार्ग का स्थापन

सत्य बातों को प्रकाशित करते हुए, खण्डन करने योग्य का खण्डन भी करना पडता है। इसके बिना सत्य का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। चावल खाने हों तो धान (तुष सहित चावल) को खाण्डना ही पडता है। इसके लिए ऊखल और मूसल चाहिए। अपने में खाण्डने की शक्ति न हो तो मजदूर बुलवाने पडते हैं। कोई भी अनाज छिलके उखाडे बिना नहीं खाया जाता। आडे आने वाले आवरणों को हटाए बिना, आत्मा पर चिपके हुए कर्म और विरोधियों के विरूद्ध युद्ध किए बिना आराधना का सच्चा आनन्द, सच्चा स्वाद नहीं मिल सकता।
कस वाली किसी भी चीज के अन्तिम सत्व को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सब क्रियाएं करनी पडती हैं और कचरे को दूर करना पडता है। सच्चा दर्शन पाने के लिए, सब कुदर्शनों और दुनिया की सब अवास्तविक मान्यताओं का त्याग करना ही पडता है। खण्डन की बात आते ही कितने ही लोग मौन रहने को कहते हैं। पाप वाली भाषा न बोलना ही सच्चा मौन है और पाप के प्रतिकार के लिए बोलना, यह भी मौन ही है। उन्मार्ग के उन्मूलन बिना, सन्मार्ग की स्थापना शक्य ही नहीं है। उन्मार्ग के उन्मूलन में जैसे आवश्यक उग्रता चाहिए, वैसे सन्मार्ग की स्थापना में वास्तविक शान्ति चाहिए। अकेली ठंडक तो हिम जैसी है, उससे फसल जल जाती है, जबकि वर्षा में ठंडक और गर्मी दोनों हैं। इसीलिए वह फसल को पकाती है। उन्मार्ग का उन्मूलन कर के सन्मार्ग का स्थापन करने में दोनों चीजों की आवश्यकता रहती है।-सूरिरामचन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें