शनिवार, 27 अगस्त 2016

अज्ञानी दया के पात्र हैं



शास्त्रकार कहते हैं कि "कदाग्रही को उपदेश करना, यह कुतिया के शरीर पर कस्तूरी का लेप करने के बराबर है।" वास्तव में दुराग्रही के लिए ज्ञानी के वचन भी बेकार हैं। इतना ही नहीं, अपितु ये तो ज्ञानियों के दुश्मन होते हैं और दुश्मनों को भी बढाते हैं। ऐसे दुश्मन रूप से बढें और दुश्मनों को बढ़ाएँ इसी में ही ज्ञानी की महत्ता सूचित होती है। ज्ञानी के पीछे अज्ञानियों का बहुत बडा टोला होता ही है, यह सनातन नियम है। सम्यक्त्व और मिथ्यात्व यह शाश्वत चीज है। सम्यक्त्व का मार्ग स्थापित होता है कि मिथ्या-मार्ग के अंकुर फूटने लग जाते हैं। इस दुनिया में जिस प्रकार तिरने और तिराने वाले होते हैं, उसी प्रकार डूबने और डुबाने वाले भी होते ही हैं। संसार की पिपासा जिनके रोम-रोम में व्याप्त है और जो मोक्ष के ही शत्रु हैं, वे ज्ञानी के शत्रु बन कर शत्रु बढाने के सिवाय दूसरे काम करें भी क्या? अज्ञानी जो विरोध करते हैं, वे तो दया के पात्र ही हैं।-सूरिरामचन्द्र

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