यह मनुष्य जन्म आदि जो
सामग्री आपको अपने महान् पुण्योदय से प्राप्त हुई है, उसकी सफलता आप कब और
कैसे साध सकते हैं? यह सब तो प्रारम्भिक साधन हैं। इन साधनों को आप
साध्य के साधन के रूप में उपयोग करें, तभी इसकी प्राप्ति आप के लिए सफल सिद्ध होगी। महापुण्य से प्राप्त मनुष्य
जन्म आदि समग्र सामग्री की सफलता के लिए क्या-क्या करना आवश्यक है?
इस असार रूप संसार में
आर्य कुल आदि सामग्री सहित दुर्लभ ऐसे मनुष्य जन्म को प्राप्त करके भव्य जीवों के
लिए जो त्याज्य है, उनको त्यागने का एवं जो करणीय है, वह करने का प्रयत्न करना
चाहिए एवं जो-जो प्रशंसा योग्य है, उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, जो-जो सुनने योग्य है,
उसे ही सुनना चाहिए।
मनुष्य जन्म आदि को सफल
बनाने के लिए चार बातें करनी होगी-
1.
त्यागने योग्य को त्यागना होगा।
2.
करणीय को करना होगा।
3.
प्रशंसा की योग्यता युक्त की प्रशंसा करनी होगी एवं
4.
सुनने योग्य को सुनना होगा।
आप लोगों ने कुछ त्याग
नहीं किया,
ऐसी
बात नहीं है,
परन्तु
जो त्यागने योग्य है, उसका त्याग करना है। आप निष्क्रिय हैं, ऐसा भी नहीं है, परन्तु अब जो करणीय है, उसे करने में जुट जाना
पडेगा। आज स्वार्थादि के वशीभूत होकर चापलूसी करने की जो कुटेव पड गई है, उसे छोडकर जो प्रशंसा
के योग्य है,
उसकी
प्रशंसा करनी पडेगी। सुनने में भी मर्यादा होनी चाहिए। हर बात नहीं सुनें। जिस-तिस
का नहीं सुनें। हितकारी सुने बिना रहना नहीं, ऐसा करना पडेगा।
यह सब कब संभवित हो
सकता है?
जब
विवेक प्रकट हो।
क्या त्याज्य है, क्या करणीय है, क्या प्रशंसा के योग्य
है,
क्या
सुनने योग्य है, इसका निर्णय करना है न? और उस निर्णय का अमल भी
करना है न?
क्यों? संसार असार है इसलिए।
उससे छूटना है और मुक्ति प्राप्त करनी है इसलिए न? संसार असार लगे बिना
मुक्ति की अभिलाषा जागृत नहीं होगी और उसके बिना मनुष्य भवादि की सामग्री का सच्चा
मूल्य भी ध्यान में नहीं आएगा। इसलिए सर्व प्रथम यही निर्णय करो कि संसार असार है
और जो करना है,
विवेक
बुद्धि से करना है।
-आचार्य श्री विजय
रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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