रविवार, 26 जून 2016

धर्म विषयक अज्ञान खटकता है?



देव में देवबुद्धि और अदेव में अदेवबुद्धि, गुरु में गुरुबुद्धि और अगुरु में अगुरुबुद्धि तथा धर्म में धर्मबुद्धि और अधर्म में अधर्मबुद्धि, यह सम्यक्त्व है। इससे विपरीत मिथ्यात्व है। यदि समझें तो इतने में सब तत्त्वार्थों का समावेश हो जाता है। देव कौन और अदेव कौन, गुरु कौन और अगुरु कौन, धर्म कौनसा और अधर्म कौनसा, यह निर्णय हो जाने के बाद कौनसा निर्णय शेष रह जाता है? अज्ञानी को भी यह बात निश्रा से ही माननी होती है। देव में अदेवबुद्धि और अदेव में देवबुद्धि आदि जैसे मिथ्यात्व हैं, वैसे ही अज्ञानी रहना अच्छा लगे तो यह भी मिथ्यात्व है। तत्त्वों के विषय में अज्ञान आपको खटकता है? हम अज्ञानी हैं, अतः सुगुरु की निश्रा में ही चलें, ऐसा आपका निर्णय है क्या? ज्ञानी सुगुरु जो कहे, उसे मान लेने की आपकी तैयारी है? आज अधिकांश को धर्म-विषयक अज्ञान खटकता ही नहीं है। व्यावहारिक ज्ञान के प्रति जैसी ललक है, धार्मिक ज्ञान या तात्विक ज्ञान के प्रति वैसी ललक लगभग नहीं है। व्यावहारिक विषयों का अज्ञान इतना अधिक खटकता है कि अनपढ मां-बाप भी पुत्रों को शक्ति से उपरांत जाकर भी पढाने का प्रयत्न करते हैं। यदि लडका ठीक से नहीं पढ पाता है तो विचार आता है कि इसकी जिन्दगी बरबाद हो जाएगी; इस भय से अपने पुत्र को बात-बात में ताना मारा जाता है। क्या ऐसा विचार आपको तत्त्वज्ञान-रहित पुत्र के विषय में भी आता है? -सूरिरामचन्द्र

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