गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

शासन और रामदेवजी की विवेकशून्यता का परिणाम


रामलीला मैदान पर रामदेवजी द्वारा किए गए आंदोलन और उस पर की गई पुलिसिया कार्यवाही पर माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है, हालांकि रामदेवजी पर डाली गई 25 फीसदी जिम्मेदारी कम है, क्योंकि जो कुछ हुआ उसके लिए शासन और रामदेवजी दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं और यह दोनों की विवेक शून्यता का परिणाम है। सरकार भयभीत थी और रामदेवजी पूरी तरह अहंकार के आगोश में थे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बार इतना बडा आंदोलन अन्ना हजारे और रामदेवजी आदि चला रहे थे, पूरा मीडिया इस मुद्दे पर उनके साथ खडा था तो देश की जनता लामबंद होनी ही थी, क्योंकि आज हर कोई इस महामारी से पीड़ित है। आंदोलन को जैसे-जैसे समर्थन मिलता दिख रहा था, सरकार की धडकन तेज हो रही थी, इसीलिए रामदेवजी जब दिल्ली पहुंचे तो उनसे वार्ता के लिए चार-चार काबीना मंत्री हवाई अड्डे पर पहुंच गए। ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ। इससे सरकार की घबराहट साफ नजर आती है, लेकिन इस घबराहट से रामदेवजी का अहंकार बढ गया।

वे रामलीला मैदान पहुंचे तो वहां जिस प्रकार मीडिया का जमावडा रामदेवजी को दिखाई दिया, लाईव टेलीकास्ट से देशभर में जिस प्रकार जनसैलाब उमडने की खबरें प्रसारित होती रही, उससे सरकार की घबराहट और बेचैनी बढती गई, वहीं रामदेवजी का अहंकार भी बढता गया, उस समय की उनकी बॉडी लेंग्वेज, हावभाव और घोषणाएं इसका स्पष्ट प्रमाण हैं।

रामदेवजी मंच से लगातार यह घोषणा करते रहे कि हमारी 99 फीसदी मांगें सरकार ने मान ली है और सिर्फ एक प्रतिशत पर बात अटकी है, सरकार से लिखित पत्र आने वाला है, बहुत जल्द ही आपको खुशखबरी सुनाने वाला हूं। सरकार भी इसके लिए तैयार दिखाई दे रही थी। आंदोलनों में हमेशा ऐसा होता है और ऐसी ही रणनीति होती है कि यदि 99 फीसदी मांगें मानी जा रही है तो लिखित समझौता करके एक बार आंदोलन स्थगित कर दो और शेष बचे एक फीसदी के लिए समय सीमा दे दो। इससे आंदोलन की ताकत भी बढती है और जनता में आंदोलन के प्रति विश्वास भी प्रगाढ होता है। फिर एक प्रतिशत के लिए लडाई आसान हो जाती।

लेकिन, रामदेवजी मीडिया की चमक और उमडते जनसैलाब के कारण अधिक अहंकारी हो गए। दूसरी ओर शासन अधिक भयाक्रांत था। अहंकार में विवेक नष्ट हो जाता है, वहीं भयभीत व्यक्ति अधिक हिंसक हो जाता है। भयग्रस्त व्यक्ति धैर्य खो देता है और धैर्य खोते ही उसका विवेक नष्ट हो जाता है, वह हिंसक हो जाता है। शासन और रामदेवजी दोनों का विवेक नष्ट हुआ, उसी की सजा भुगती भोली-भावुक-भ्रष्टाचार पीड़ित जनता ने।

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