शनिवार, 31 जनवरी 2015

नव कर्तव्यों का पालन करें



शास्त्रकारों ने, तत्त्वज्ञानी महापुरुषों ने, विश्व के जीव मात्र का भला चाहने वालों ने यह उपदेश दिया है कि संसार की नाशवंत वस्तुओं को एक न एक दिन तो छोडना ही पडेगा, यह निश्चित है, इसलिए तुम इन्हें स्वयं ही क्यों न छोड दो? यदि न छोड सको तो कम से कम अपने नव कर्त्तव्यों का पालन तो अवश्य करो ताकि शान्तिपूर्वक जी सको, शान्तिपूर्वक मर सको और बाद के भव में भी क्रमशः आत्मा का श्रेयः साध सको।

इसके लिए प्रथमतः श्री वीतराग परमात्मा द्वारा निषेधित कार्य नहीं करने का संकल्प करें। दूसरा, सभी जीवों के प्रति करुणाभाव रखें। तीसरा, यथाशक्ति दान करें। अनंत ज्ञानियों द्वारा संसार सागर से पार होने के लिए दर्शित मार्ग की प्ररूपणा करने वाले शास्त्रों का श्रद्धापूर्वक श्रवण करना, यह चौथा कर्त्तव्य है। पांचवां, पूर्व में कृत और वर्तमान में हो रहे पापों को नष्ट करने के लिए पश्चाताप करें। छठा, विषय-कषायरूप भव की भीति, अर्थात् संसार का डर। आत्मा के शुद्ध स्वरूप के प्रकटीकरण हेतु मुक्ति मार्ग अनुराग सातवां कर्त्तव्य है। सत्पुरुषों का संसर्ग करना आठवां कर्त्तव्य है। और नवां, विषयों से विरक्त बनने का प्रयास करें।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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