गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

दुःख को सहें और सुख में लिप्त न हों



हम आपको सहलाने या बहलाने के लिए पाट पर नहीं बैठते, अपितु आपको चेताने के लिए पाट पर बैठते हैं। नहीं चेतोगे तो नहीं जाने कहां फेंक दिए जाओगे? यह संसार बहुत लम्बा-चौडा है। दुनिया बिना पैसे वालों पर दया खाती है, परन्तु मुझे पैसे वालों पर दया आती है कि उनकी क्या दशा होगी? सुख के लोभ से आज कुछ कम खराबियां पैदा नहीं हुई है। बडे गिने जाने वाले लोग आज पैसे के पीछे मरने-मारने को तैयार हैं और पैसे से वे खरीदे जा सकते हैं। यह है उनकी स्थिति!

दुःख को सहन करना सीखना भी धर्म है। दुःख को निकालने का प्रयास करने से दुःख जाता नहीं है। कदाचित् चला जाए तो वापस आएगा ही। लेनदार आए और उसे आप धकेल दो तो भी वह पांचवें दिन फिर आएगा ही। शक्ति वाला तो देना चुकाकर ही उसे वापस भेजता है, जिससे दुबारा उसका मुँह न देखना पडे। इसी तरह शक्ति हो तो दुःख को सहन कर ही लेना चाहिए। शक्ति होने पर भी दुःख सहन न करना और सुख की सामग्री मिले तो आवश्यकता न होने पर भी उसका उपयोग करना, इतना ही नहीं, अपितु पाप करके भी उस सामग्री को प्राप्त करना, ऐसी स्थिति में धर्म हममें प्रवेश कैसे कर सकता है? भौतिक सुख आशीर्वाद नहीं, वह तो अभिशाप है। कर्मराजा जिसे दुर्गति में डालकर दुःखी करना चाहता है, उसे वह पहले सुख में सुला देता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें