बुधवार, 24 जून 2015

धिक्कार है.....धिक्कार है...



धिक्कार है उन लोगों को जो अपने आपको जैन कहते हैं, किन्तु समूचे जैनधर्म पर हमले के समय भी जिनके मुँह नहीं खुलते और "क्षमा वीरस्य भूषणम्" का झूठा राग अलापते हैं, अपनी कायरता और नामर्दानगी को छिपाने के लिए "सहनशीलता" की बातें करते हैं; लेकिन वे न क्षमा का मतलब जानते हैं और न ही सहनशीलता का मतलब जानते हैं। क्षमा और सहनशीलता निजी हमले के समय होती है, धर्म पर हमले के समय नहीं। गुजरात उच्च न्यायालय ने 8 मई, 2015 को जो आदेश दिया और उसमें जो अपना आब्जर्वेशन जैनधर्म की दीक्षाओं और बालदीक्षाओं को लेकर लिखा; वह निहायत ही एक तरफा था और किन्हीं अपने आपको जैन कहनेवाले जस्मीनभाई महेशभाई शाह और उनके वकील नीतिन गांधी की गलत व धर्म-विरोधी कर्कश टिप्पणियों का नतीजा था। लेकिन हैरत की बात यह है कि कोई मांई का लाल जैनी सामने आकर खड़ा नहीं हुआ कि यह गलत हो रहा है।

दूसरी धाराओं को छोड़ दीजिए, उसमें दूध का दूध और पानी का पानी करना न्यायालय का काम है और मामला न्यायालय में विचाराधीन है, हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते; किन्तु अभी सूरत में और अहमदाबाद में इतनी भव्य दीक्षाएं हुई, मुम्बई में कई दीक्षाएं हुई, अच्छे-अच्छे पढे-लिखे विद्वानों ने, करोडपति घरों के लोगों ने सबकुछ छोडकर जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की, बडे-बडे भव्य समारोह हुए और लाखों लोगों ने स्वामीवात्सल्य का आनंद लिया; लेकिन दीक्षाधर्म पर हमले के समय कोई बोलनेवाला नहीं है, यह भयानक आश्चर्य और भयानक कायरतापूर्ण मानसिकता का परिचायक है। इसी का नतीजा है कि ऐसे उच्छृंखल लोगों के हौंसले बुलन्द होते हैं जो इस दीक्षाधर्म को ही समाप्त करने पर आमादा हैं।

जिन परम तारक, परम प्रतापी, धर्मयौद्धा, तपागच्छाधिपति आचार्य भगवन श्री रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा ने दीक्षाधर्म के लिए अपनी नौ वर्ष की आयु से लेकर अंतिम श्वांस लेने तक, 96 वर्ष की आयु तक अथाह संघर्ष किया और दीक्षाधर्म को सुगम बनाया, उनके अनुयायियों को कौनसा सांप सूंघ गया है कि मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही है। जिस दीक्षाधर्म का रास्ता साफ करने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी, आज उसी दीक्षाधर्म को समाप्त कर देने वाली ताकतें फिर से अपना सिर उठा रही हैं।

धर्म पर हमले के समय क्या हम छोटे-छोटे आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट नहीं हो सकते? इसमें कौनसा अहंकार आडे आ रहा है? इस समय तो जैनमात्र को एकजुटता का परिचय देना ही चाहिए। यह मत भूलिए कि आज एक घर की बारी है तो कल दूसरे घर की तैयारी है। पडौस के घर में आग लगने पर तमाशाई नहीं हुआ जाता, आग बुझाने में जुटा जाता है, क्योंकि पडौस में भी उसकी आँच जरूर आती है और वह भी आग की लपटों का शिकार हो सकता है, यह ध्यान रहे।

अब भी वक्त है, यदि जैनी कहलाने वालों में कुछ भी लज्जा शेष है तो उन्हें जैन दीक्षाओं पर हमले व धर्म-विरोधी टीकाओं का खुलकर प्रतीकार करना चाहिए।

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