शुक्रवार, 26 जून 2015

लज्जा दुराचार से, परिश्रम से नहीं



वर्तमान समय में लोगों को प्रायः एकदेशीय ज्ञान होता है, जबकि प्राचीन काल का ज्ञान प्रायः सर्वदेशीय होता था। वर्तमान में उपाधिधारी शिक्षित तो अधिक हैं, पर उस शिक्षा का उनके जीवन में प्रायः कोई विशेष उपयोग नहीं है। प्रत्येक परिस्थिति में सुख से जीवन जीना आज के शिक्षित वर्ग को प्रायः आता ही नहीं है। वर्तमान शिक्षित लोग प्रायः राजकीय सेवा अथवा कोई अन्य नौकरी ढूंढते हैं और यदि कोई नौकरी नहीं मिले, तो बेकारी में जीवन नष्ट करते हैं। वर्तमान शिक्षित लोगों में से कुछ धंधे भी करते हैं, पर उन्हें काम पडे तो वे कोई दूसरा धंधा नहीं कर सकते।

शिक्षित व्यक्ति वह होता है जो किसी भी परिस्थिति में सुख से जीवन निर्वाह कर सके। घबराकर सिर पर हाथ रखकर बैठे रहने वाले या किसी की कृपा की आशा-प्रतिक्षा में बैठे रहने वाले को शिक्षित नहीं कहा जा सकता। ज्ञान जीवन को सुखी और उत्तम बनाने के लिए होता है, परलोक को सुधारने और मोक्ष को समीप लाने के लिए होता है। जो ज्ञानी होता है, वह कैसी भी विषम परिस्थिति में गौरवपूर्ण जीवन व्यतीत करता है और मस्तिष्क का सन्तुलन बनाए रखता है। उसे तो केवल दुराचार से लज्जा आती है, परिश्रम से नहीं। ज्ञानी व्यर्थ के झूठे बडप्पन को मारना और आवश्यकताओं में कटौती करना जानता है।

ज्ञानी मिथ्याभिमान में आकर स्वयं भूखों मरने और भीख मांगने की परिस्थिति में स्वयं को नहीं डालेगा। संसार में किस समय क्या परिस्थिति उत्पन्न हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता। जिस तरह किसी भी परिस्थिति में अनीति नहीं करनी चाहिए, उसी तरह चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाए, पर भीख नहीं मांगनी चाहिए, इतनी दृढता तो रखनी ही चाहिए।

साधु सहन करने की बात कहता है तो उसका यह कर्तव्य है, लेकिन सुखी मनुष्य का तो अपने स्वधर्मी भाई के प्रति कर्तव्य है कि वह उसे उस गरीबी से बाहर निकाले, वह सहन करने के लिए नहीं कहे। पुराने समृद्धिशाली लड्डुओं में स्वर्ण मुद्राएं और छाछ में चांदी के सिक्के डालकर स्वधर्मियों के यहां पहुंचा देते थे।-सूरिरामचन्द्र

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