गुरुवार, 25 जून 2015

गुरुभगवंत धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाएँ !



जिन तथाकथित साधुओं ने केवल साधु का वेष धारण कर रखा है और स्वयं की आत्मा को छलने के साथ-साथ समाज को भी छलने का काम कर रहे हैं, हमें इस समय उनसे कुछ नहीं कहना है, उन लोगों से भी कुछ नहीं कहना है कि जो केवल मंदिर, उपाश्रय, स्थानक या किसी धर्म स्थान में केवल अपने आपको धर्मी कहलवाने, धर्म के नाम पर राजनीति करने अथवा तुच्छ स्वार्थ साधने के मकसद से जाते हैं, जिन्हें वास्तव में धर्म के गौरव-गरिमा, आत्मा और आत्मा की पवित्रता, सुचिता से कोई सरोकार नहीं है।

लेकिन, उन सभी आचार्य भगवंतों, स्थविर भगवंतों, उपाध्याय भगवंतों, साधु-साध्वी भगवंतों व श्रावक-श्राविकाओं से हमारी विनम्र विनति है कि कृपा करो और छोटे-छोटे मतभेदों, व्यक्तिगत विचार-भिन्नताओं को इस संकट की घडी में एक तरफ रखकर प्रभु महावीर के शासन पर, समूचे धर्म पर, जैनधर्म के प्राण विरति-दीक्षा पर हो रहे हमलों का प्रतिकार करो। अपनी आँखों के सामने धर्म की हीलना बर्दाश्त करना, ऐसे समय में मौन रहना क्या उचित है? आप सब तो धर्म के प्राण हैं, कृपा कर इस समाज को जागृत करो। व्यापार-धंधेवाला यह समाज धीरे-धीरे नपुसंक होता जा रहा है, लोग धर्म के लिए मर मिटते थे। आज फिर से इस समाज को जागृत करने की आवश्यकता है और यह कार्य गुरुभगवंत ही कर सकते हैं।

महोत्सवों में, स्वामीवात्सल्य में हजारों-लाखों की संख्या में देशभर में अलग-अलग जगह धर्मावलम्बी शामिल होते हैं और अपनी आत्मा को पवित्र करने का उपक्रम करते हैं, सबके सब तो नमकहराम नहीं ही हो सकते हैं, उनमें धर्म का अंश जरूर होता ही है, आवश्यकता सिर्फ उन्हें जागृत करने की है। उस भीड़ का एक फ़ीसदी हिस्सा भी क्या सत्य धर्म की रक्षा के लिए कृतसंकल्प नहीं हो सकता? गुरुभगवंत यदि सही प्रेरणा करें और स्वयं धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाएँ तो सब हो सकता है.

सबका एक ही संकल्प हो कि- मैं रहूं या न रहूं, मेरा धर्म रहना चाहिए। धर्म मेरे लिए सबसे पहली प्राथमिकता है। धर्म है तो सबकुछ है, अन्यथा यह जीवन निस्सार है।

कडवा भी हितकारी सच बोलना चाहिए, ऐसा मेरा विश्वास है और परम तारक गुरुदेव ऐसा ही करते थे। चाहे कितनी ही विपत्तियां आई, लेकिन उन्होंने लोकहितकारी, आत्मकल्याणकारी कडवा सच बोलना नहीं छोडा। बुरा लगे तो मिच्छामीदुक्कड़म !

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