शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

धर्म के लिए सबकुछ न्यौछावर



जब धर्म के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हों, देव-गुरु-धर्म पर हमला हो, अन्याय हो; तब उसका प्रतिकार न करना मानवता के लिए घोर कलंक है, श्रावकत्व पर कलंक है, समाज पर कलंक है। सच्चा धर्मवीर ऐसे अन्याय के विरूद्ध अलख जगाता है। उसमें अवश्य ही प्रशस्त कषाय पैदा होता है। वह न तो स्वयं अन्याय करता है और न अपने सामने होने वाले अन्याय को देख सकता है। वह सदैव अन्याय और अनीति के प्रतीकार के लिए कटिबद्ध रहता है। अन्याय का प्रतिकार करने के लिए देव-गुरु-धर्म-समाज-संस्कृति के चरणों में वह अपने प्राणों को हंसते-हंसते बलिदान कर देता है।

धर्म के ऊपर आफत आए और वीतराग नहीं बने हुए धर्मी बाह्य समता से चिपके रहें, यह उचित नहीं है। फिर भी यदि ऐसी बाह्य समता चिपक जाए तो उसका अर्थ होगा कि उस आत्मा के अन्तर में मोक्ष मार्ग के प्रति जैसा चाहिए वैसा राग अभी प्रकट हुआ ही नहीं है। स्वयं अशक्त हो और आक्रमण का सामना कर सके ऐसी हालत न हो तो बात अलग है।

सत्व के अभाव में कदाचित् सच्चा व्यक्ति भी प्रकट में न बोल सके, यह संभव है, किन्तु सच्चा राग होगा और उसके अन्तर में जलन नहीं होगी, यह संभव नहीं है। इस जलन के योग से हृदय में यही भावना रहती है कि कब शासन के दुश्मन दूर हों।और शासन के दुश्मनों को दूर करने के कार्य में लगी हुई आत्माओं की भी वह अनुमोदना ही करता है और बने वहां तक उनको सहायता देने में भी नहीं चूकता।

प्रशस्त कषाय को उत्पन्न करने की आवश्यकता नहीं होती, अपितु अवसर आने पर वह तो स्वतः उत्पन्न हो ही जाता है। जिस वस्तु पर राग होता है, उस वस्तु की लूट रागी सहन नहीं कर सकता है। जिस वस्तु को आत्मा तारक मानती है, उस वस्तु के ऊपर आफत आए तो वह सहन नहीं कर सकती है। धर्म के रागी में प्रशस्त कषाय का उत्पन्न होना पूर्णतः स्वाभाविक है।

सच्चा धर्मी दुनिया में संरक्षण करने योग्य एक मात्र मोक्ष मार्ग को ही मानता है, इसलिए वह पौद्गलिक ऋद्धि चली जाए तो इसे भाग्याधीन मान लेता है और स्वयं की निन्दा हो तो अपने अशुभ कर्म का उदय मान लेता है और समता रख लेता है, किन्तु मोक्ष मार्ग पर आफत आए तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करता, अपना सम्पूर्ण बलिदान देकर भी वह उस आफत को टालने का प्रयास करता है, धर्म के लिए वह सबकुछ न्यौछावर कर देता है। ऐसी आत्माएं तीर्थंकर गौत्र का बंध भी कर सकती हैं, अन्यथा तो एक-दो भव कर के या पूर्वकृत कर्मानुसार कुछ भव करके मोक्ष में अवश्य जाती हैं।-सूरिरामचन्द्र

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