बुधवार, 13 मई 2015

ज्ञानी पाप में सावधान रहता है



ज्ञानी हो, उसे भी पाप करना पडे, यह संभव है, परन्तु वह सावधान रहता है। प्रसंग आने पर ममता तोड देने में उसे देर नहीं लगती। युद्धभूमि में भी जहां मृत्यु नजदीक प्रतीत हुई, ज्ञानी सब छोडकर, अनशन करके आराधना कर सकता है। समाधि का अभिलाषी सम्यग्दृष्टि अवसर के अनुसार व्यवहार कर लेता है। इसका अनुभव या तो ज्ञानी को होता है अथवा जो अपने मन को समाधि में रखने के लिए सतत प्रयत्नशील हो उसे होता है। अविरति के उदय से जब सम्यग्दृष्टि भी विरति नहीं कर पाता, तब उसे कैसा बर्ताव करना पडता है, यह उसका मन जानता है। स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला हानि का व्यापार भी, परिणाम में लाभदायक हो सकता है। हानि उठाकर भी पूंजी खडी कर लेनेवाला फिर कमाना शुरू कर देता है। जैसे व्यवहार में आपको इस बात का सहज अनुभव होता है, वैसे ही आप तत्त्वज्ञानी बने होते तो आत्मा और कर्म के विषय में भी ऐसा विचार आपको सहज ही आ सकता था।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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