आप अपनी भाग्यशालिता को सफल कर रहे हैं या नहीं? कर रहे हैं तो वह
कितने अंश में सफल कर रहे हैं? यह सत्य विचार और निर्णय आपको करना चाहिए।
परन्तु, ऐसा विचार कब हो सकता है? आपको अपनी इस भाग्यशालिता का सही भान हो
तब न? आप अपनी भाग्यशालिता किसमें मानते हैं? पास में बहुत लक्ष्मी हो, शरीर
निरोगी हो, पत्नी अच्छी मिली हो,
संतान भी अच्छी हो, लोग आपके प्रति आदरभाव प्रकट
करते हों, आप जहां जाएं वहां आपकी पूछ होती हो, आपको कोई अप्रिय नहीं बोल
सकता हो और आपका सामना करने वाले को आप बर्बाद कर सकते हों, विषयराग
जनित और कषायजनित ऐसी जो-जो इच्छाएं आपके मन में पैदा होती हों और वे इच्छाएं पूरी
होती हों, आप चाहे आदर के पात्र न भी हों तब भी धर्म स्थानों में आपको आदर मिलता हो, तो
ही आपको लगता है कि ‘मैं भाग्यशाली हूं।’
इन सब भाग्यशालिताओं के सिवाय और कोई भाग्यशालिता आपकी
दृष्टि में आती है क्या?
ऐसी भाग्यशालिता ही सच्ची भाग्यशालिता लगे तो इन
भाग्यशालिताओं के निमित्त से आप दुर्भाग्यशालिता को पाए बिना नहीं रहेंगे, क्योंकि
यह मिथ्यात्वी मान्यता है। आपकी सही व सच्ची भाग्यशालीता तो यह है कि आपको जैन कुल
मिला, जिसके कारण मोक्ष-प्राप्ति के लिए आवश्यक सामग्री की उपलब्धता आपको सहज है; किन्तु
सवाल यह है कि आपको उसकी कद्र कितनी है? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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