महिला आरक्षण बिल....! संसद
में महिलाओं को 33 फीसदी
आरक्षण का बिल 2010 में पास करा लिया गया था, लेकिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी, बीएसपी और
राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों के भारी विरोध की वजह से ये बिल पास नहीं हो
सका। इसकी वजह है दलित, पिछड़े तबके की महिलाओं के लिए अलग
से आरक्षण की मांग। कांग्रेस के पास 2010 में अपने दम पर
बहुमत नहीं था लेकिन आज मोदी सरकार के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है, आखिर अब महिलाओं को उनका हक देने क्या दिक्कत है?
सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखा रही है?
संसद
में महिलाओं का औसत देखें तो विश्व का औसत जहां 22.6 फीसदी है। संसद में महिलाओं के आंकड़ें देखें तो रवांडा 63 फीसदी के स्तर पर हैं और नेपाल में 29.5 फीसदी
महिलाएं संसद में हैं। अफगानिस्तान में 27.7 फीसदी और चीन की
संसद में 23.6 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान में भी संसद
में 20.6 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 12
फीसदी है।
संसद
में महिला आरक्षण बिल क्यों लटका है और लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद फिर क्या
दिक्कत है? क्या
पार्टियों में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है और पुरुषवादी मानसिकता की वजह से
टालमटोल की जा रही है? कोटे के भीतर कोटे की दलील में कितना
दम है और क्या इन्हीं मुद्दों की वजह से महिला आरक्षण बिल लटका रहेगा, ये कुछ अहम सवाल हैं।
राजनीति
में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 20 साल से अटका हुआ है। ये बिल 1996
में पहली बार पेश हुआ था और 2010 में राज्यसभा
से पास हो गया था, लेकिन लोकसभा से पास नहीं हुआ है। सपा,
बसपा और आरजेडी का विरोध और कोटे के भीतर कोटे की मांग के चलते ये
बिल पास नहीं हो पाया।
संसद
में महिला आरक्षण बिल 1996 में
देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और इसका कई पुरुष सांसदों ने भारी विरोध
किया था। फिर साल 2010 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में
दोबारा पेश होने के बाद राज्यसभा में बिल पास हुआ, लेकिन
लोकसभा में आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया। इतना ही नहीं लोकसभा में महिला आरक्षण
बिल की कॉपी फाड़ी गई।
महिला
आरक्षण बिल के तहत संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव है। 2010 में
राज्यसभा में बिल पास हुआ लेकिन कांग्रेस लोकसभा में बिल पास नहीं करा पाई क्योंकि
कांग्रेस के पास अपने दम पर बहुमत नहीं था। अब बीजेपी के पास लोकसभा में स्पष्ट
बहुमत है और राज्यसभा में दोबारा बिल पास कराने की जरूरत नहीं है तो सरकार इसे पास
क्यों नहीं करा रही है ये सवाल उठना लाजिमी है।
हालांकि
विरोधियों की दलील है कि दलित, ओबीसी
महिलाओं के लिए अलग कोटा होना चाहिए और 33 फीसदी आरक्षण में
अलग से कोटा होना चाहिए। सवर्ण और दलित, ओबीसी महिलाओं की
सामाजिक हालत में फर्क होता है और दलित, ओबीसी महिलाओं ने
ज्यादा शोषण झेला है। महिला बिल के रोटेशन के प्रावधानों में विसंगतियां हैं, जिसे दूर करना चाहिए और फिर बिल पास कराना चाहिए। राष्ट्रपति प्रणब
मुखर्जी ने इस पर बयान दिया है कि महिला आरक्षण विधेयक का पास नहीं होना
दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे पास कराने का असली संकल्प राजनीतिक दलों को दिखाना होगा।
वहीं उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का बयान आया है कि अब इस विधेयक को और नहीं रोका
जाना चाहिए।
दुनिया के कई देशों में महिला आरक्षण की व्यवस्था संविधान
में दी गई है या विधेयक के द्वारा यह प्रावधान किया गया है, जबकि कई
देशों में राजनीतिक दलों के स्तर पर ही इसे लागू किया गया है । अर्जेटीना में 30 प्रतिशत, अफगानिस्तान
में 27 प्रतिशत, पाकिस्तान में 30 प्रतिशत एवं बांग्लादेश में 10
प्रतिशत आरक्षण कानून बनाकर
महिलाओं को प्रदान किया गया है, जबकि राजनीतिक दलों के द्वारा महिलाओं को
आरक्षण देने वाले देशों में डेनमार्क 34 प्रतिशत, नार्वे 38 प्रतिशत, स्वीडन 40 प्रतिशत, फिनलैंड 34 प्रतिशत तथा आइसलैंड 25 प्रतिशत आदि उल्लेखनीय हैं.
हमने अब तक ये दस सवाल, दस मुद्दे उठाए हैं और हम चाहते हैं कि इन मुद्दों पर गहनता से बिना किसी पूर्वाग्रह
के स्वस्थ संवाद हो।
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