उदयपुर प्रशासन की अकर्मण्यता और मानसिक दीवालियापन
तीन दिन इंटरनेट सेवाएं बंद करना औचित्यहीन
उदयपुर-फतहनगर में छोटी सी घटना हो गई। प्रशासन के कथनानुसार किसी सिरफिरे ने फेसबुक
पर भद्दी टिप्पणी कर दी तो किसी ने फेसबुक पर देश-विरोधी नारा लिख दिया। कुछ लोगों
ने उसे देखा और प्रशासन से शिकायत की। पुलिस ने उन दो-तीन बदमाशों को तुरंत गिरफ्तार
कर लिया। फेसबुक से उस पोस्ट को हटाकर प्रशासन ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कठोर से कठोर
कार्यवाही करे, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं
हो सकती है, लेकिन इस कारण से जिले भर में
इंटरनेट सेवाओं को बंद कर आम आदमी की उन पोस्ट के प्रति जिज्ञासा बढाना और आम आदमी
को परेशानी में डालना, क्या यह प्रशासनिक किंकर्तव्यविमूढ़ता,
अकर्मण्यता और मानसिक दीवालियापन को नहीं दर्शाता है...? इससे तो प्रशासन स्वयं साम्प्रदायिकता के जहर को फैला रहा है। वे बदमाश जितना
पेनिक क्रियेट न कर सके उससे ज्यादा पेनिक तो प्रशासन क्रियेट कर रहा है, इस
प्रकार प्रकारांतर से प्रशासन उन बदमाशों के काम को ही आगे बढ़ा रहा है. क्या यह साम्प्रदायिक
उन्माद फैलाकर ध्रुवीकरण करने का प्रयास है...? क्या प्रशासन किसी प्रकार की वाहवाही लूटने के लिए प्रयत्नशील है...? इस समय उदयपुर जिले में साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ सबकुछ शान्त
चल रहा है, ऐसे में प्रशासन का इस प्रकार
का कदम कई प्रकार के सवाल खडे करता है, क्योंकि उदयपुर में न तो कश्मीर जैसे हालात हैं और न हो सकते हैं। चंद सिरफिरे
लोग किसी भी समुदाय में हो सकते हैं, उन पर प्रशासन को कडी निगाह रखनी चाहिए...बस!
प्रशासन को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रधानमंत्री का डिजिटल इण्डिया पर
बहुत ज्यादा फोकस है, आजकल इंटरनेट का उपयोग केवल इस प्रकार के घोर निंदनीय अपराध के
लिए ही नहीं होता, नेट का उपयोग ऑनलाइन स्टडी, ऑनलाइन क्लासेज, ऑनलाइन एग्जाम, ऑनलाइन व्यवसाय, ऑनलाइन टिकिट बुकिंग, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन्स, ऑनलाइन
बैंकिंग, ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग, ऑनलाइन सरकारी गैरसरकारी कामकाज आदि कई चीजों के लिए होता है।
ऐसे में दो-तीन मूर्खों के कारण (जिन्हें पहले ही गिरफ्तार कर चुके हैं) सबकुछ ठप्प
कर देना और हजारों लोगों को संकट में डाल देना, यह मानसिक दीवालियापन या स्वयं शाबाशी
प्राप्त करने के लिए उन्माद फैलाने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। इस कदम से तो प्रशासन
ने स्वयं को कठगरे में खडा कर लिया है।
एक अपील आम नागरिकों से भी कि अपना ध्यान हिन्दू-मुस्लिम कट्टरता या कटुता की ओर
न लगाकर शिक्षा, स्वास्थ्य, मंहगाई, रोजगार और जीवन को बेहतर बनाने के मुद्दों की ओर केन्द्रित
करेंगे तो उसमें सबका भला होगा। कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्त्व जीवन की मूल आवश्यकताओं
से लोगों का ध्यान हटाने के लिए भी हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खेलने और लोगों को भटकाने, भडकाने व आपस में लडाने का काम करते हैं, उनसे बचना चाहिए।
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