आज ढोंग, दम्भ, प्रपंच
इतना बढा है कि जिसकी कोई सीमा ही नहीं। यहां कुछ और, वहां
कुछ और! वाणी,
वचन और बर्ताव में मेल ही नहीं। यह आज की दशा है। इसीलिए ही
मैं कहता हूं कि ‘हम गुण के रागी अवश्य हैं, परन्तु गुणाभास के तो कट्टर विरोधी ही हैं।’ हम
जहां त्याग देखें, वहां हमें आनंद अवश्य हो, परंतु वह त्याग यदि सन्मार्ग पर हो तो ही उस त्याग के उपासक की प्रशंसा करें, अन्यथा सत्य को सत्य के रूप में जाहिर करें और उसके लिए समय अनुकूल न हो तो
मौन भी रहें। ‘कौनसा त्यागी प्रशंसापात्र?’ यह बात गुणानुरागी को अवश्य
सोचनी चाहिए। आज इस बात को नहीं सोचने वाला आसानी से गुणाभास का प्रशंसक बन जाए
वैसा माहौल है। सम्यग्दृष्टि की एक नवकारशी को मिथ्यामतियों का हजारों वर्ष का तप
भी नहीं पहुंच सकता, यह एक निर्विवाद बात है। इसलिए मैं अनुरोध
करता हूं कि कैसी भी स्थिति में प्रभुमार्ग से हटा नहीं जाए, उसकी सावधानी रखना सीखें। यह सत्य कहीं भी और कभी भी सिद्ध हो सकने योग्य है।-सूरिरामचन्द्र
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