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सरकारी
स्कूलों के शिक्षक वेल क्वालिफाईड और ट्रेण्ड होते हैं। एसटीसी, बीएड,
एमएड, एमफिल, पीएचडी आदि...। सरकार इसके लिए बहुत सी धनराशि निवेश करती है। उनकी नियुक्ति के
लिए उन्हें कठिन परीक्षा से गुजरना होता है। दूसरी ओर निजी शिक्षा संस्थानों का शिक्षक
वर्ग उतना प्रशिक्षित नहीं होता है। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन, भत्तों,
मेडिकल, ग्रेच्युटी, पेंशन व अवकाश-सुविधा आदि के मुकाबले निजी शिक्षा संस्थानों के शिक्षक वर्ग को
20-25
प्रतिशत वेतन और सुविधा भी नहीं मिलती। कक्षाओं में छात्र संख्या
सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में दुगुनी होती है, यानी निजी स्कूलों के शिक्षकों पर काम का दुगुना दबाव होता है। फिर भी क्या कारण
है कि मां-बाप अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजकर प्राईवेट स्कूलों में भेजना
चाहते हैं,
जबकि सरकारी स्कूलों में न के बराबर खर्च है और निजी स्कूलों
में उन्हें प्रतिमाह हजारों रुपये शिक्षा पर खर्च करने पडते हैं...? प्राईवेट स्कूलों के मुकाबले क्यों सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम शून्यवत्
होता है?
सरकार इस बात पर कभी गौर क्यों नहीं करती? और यदि करती है तो दिन-प्रतिदिन हालात क्यों बिगडते जा रहे हैं? क्यों नहीं हर बच्चे को गुणवत्ता युक्त शिक्षा का मौलिक अधिकार मिले...? क्या शिक्षा का निजीकरण और व्यापारीकरण देश के हित में है...?
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