शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

सद्गुरु के पास छोटे बालक जैसे बन जाओ


सद्गुरु के पास छोटे बालक जैसे बन जाओ

आपको तत्त्वातत्त्व का पूरा ज्ञान नहीं है, परन्तु ज्ञानी गुरु की निश्रा में हैं या नहीं? कोई भी धर्म का काम गुरु को पूछे बिना न करना, ऐसा आपका निर्णय है क्या? धर्म का चाहे जो काम हो, परन्तु सद्गुरु निषेध करें तो न करना और हां कहें तो ही करना, ऐसा आपका निर्णय है क्या? तत्त्वातत्त्व से अनजान को भी निभाया जा सकता है। जैसे घर का कोई बालक गलती करता है तो आप उसे निभा लेते हैं, क्योंकि उसकी गलती पर आप अंकुश लगा सकते हैं, परन्तु यदि बडा व्यक्ति अज्ञानी और जिद्दी हो तो आप भी कह देते हैं कि ऐसे घर नहीं चल सकता। बडा व्यक्ति गलती करता हो और हठीला हो तो मां-बाप भी कह देते हैं कि हम नहीं जानते! तू तेरी जान!क्योंकि बालक ज्यादा से ज्यादा अच्छी वस्तु को बिगाड सकता है, परन्तु बडा व्यक्ति जो गलती करे तो वह कदाचित् पेढी को भी बिकवा दे!

विद्याभ्यास बचपन में क्यों शुरू किया जाता है? बालक चाहे जितना ऊधम मचाता हो तो भी उसे काबू में किया जा सकता है। कोई ऐसा कहे कि जब बालक का मन हो, तब उसे पाठशाला भेजा जाए’, तो आप ही कहेंगे कि फिर तो पढ चुका!बालक को बलात् पढाया जा सकता है, बडे को नहीं! आजकल तो बालक दो-तीन वर्ष का हुआ, तब से पढाना शुरू! बालक को पढाने के लिए विशेष शिक्षित व्यक्ति चाहिए! बालक 20 वर्ष का हो तब तक रखडता रख कर बाद में पाठशाला भेजा जाए तो क्या वह पढ सकेगा? शिक्षक कहेगा कि यह एक कहा जाता हैतो वह पूछेगा इसे एक क्यों कहते हैं?’ एक को घोंटने की बात आएगी, वहां से वह शिक्षक का माथा पचाने लगेगा। सामान्य शिक्षण के लिए भी शिक्षक जैसा कहे, वैसा मानना जरूरी होता है। बाल्यकाल ऐसा होता है कि उसे जैसा मोड दिया जाए, वैसा मुड सकता है। वैसे वह अनपढ भी निभ जाता है, तिर जाता है, जो गीतार्थ की निश्रा में ही रहता है। उसमें मुडने का गुण होना चाहिए।

यदि अज्ञान हो तो सद्गुरु के पास छोटे बालक जैसे बन जाओ। छोटे बच्चे चाहे ऊधमी हों तो भी बच्चे ही ठहरे। बडा व्यक्ति तो झट सवाल करता है कि यह बैठा है तो मुझे खडा क्यों रखते हो? यदि उसे कहें कि तेरी भूल है।तो वह कहेगा कि भूल सिद्ध करो!छोटे बालक को बैठने को कहने पर बैठ जाता है। कदाचित् आनाकानी करे तो थप्पड मारने से रो कर बैठ जाएगा। आप ऐसे हैं? ओघ श्रद्धा और गीतार्थ की निश्रा में आप चलें तो तत्त्वातत्त्व से अनभिज्ञ होते हुए भी तिर सकते हो। अन्यथा आपकी क्या गति होगी, यह स्वयं विचार कीजिए। जैन वह कहलाता है, जिसमें ऐसा ज्ञान हो अथवा यदि स्वयं में वैसा ज्ञान न हो, तो वैसे ज्ञान वाले गीतार्थ महात्मा की निश्रा जिसने स्वीकार की हो।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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