बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

अधर्म के परिणामों से बचो


आयुष्य धर्मस्थानों में बंधता है या सब जगह बंधता है? व्यापार करते हुए, भवन बनवाते समय, अथवा चाहे जो पाप क्रिया करते हुए आयुष्य बंध सकता है या नहीं? आयुष्य किसी भी जगह और किसी भी अवस्था में बंध सकता है। अतः यथासंभव परिणामों में बिगाड हो, ऐसे संयोगों में नहीं रहना चाहिए। यदि ऐसे वातावरण में रहना पडे तो परिणाम न बिगडें, ऐसी सावधानी रखनी चाहिए। आप साधु नहीं बन सकते और पेढी-घर आदि संभाले बिना छुटकारा नहीं, अतः यदि परिणामों को अच्छे न रख सको तो यह थोडी-सी धर्म-क्रिया दुर्गति में जाने से आपको नहीं रोक सकती। यदि दुर्गति से बचना हो और देव-गुरु-धर्म का प्राप्त संयोग न छूटे, ऐसी इच्छा हो तो धर्म-क्रिया पर बहुत अनुराग पैदा करना होगा और अधर्मक्रिया के राग के प्रति विराग पैदा करना होगा। भयंकर से भयंकर पाप-क्रिया करते समय भी परिणाम अधर्ममय न बन जाएं, ऐसी मनोवृत्ति विकसित करनी होगी।

पंचेन्द्रिय प्राणिवध, महारम्भ, महापरिग्रह आदि नरक के कारणों का सेवन करने वाले भी नरक में नहीं गए और सद्गति को प्राप्त हुए, ऐसे उदाहरण हैं; परन्तु किस प्रभाव से? जैसी क्रिया, वैसे परिणाम होते तो वे अवश्य नरक में जाते, परन्तु उन्होंने परिणामों को बिगडने नहीं दिया! किसी की भवितव्यता अच्छी थी, अतः उसके परिणाम नहीं बिगडे और किसी ने प्रयत्न से अपने परिणामों को बिगडने नहीं दिया। धर्मक्रिया करने वाले के परिणाम बिगडने की संभावना कम रहती है, लेकिन वह भी अधर्म में मन से फंस जाए, यह संभव है। परन्तु आपको तो अधर्म में बैठे हुए होकर भी अधर्म के परिणामों से बचना है न? ‘अधर्म छोडने योग्य है और एकमात्र धर्म ही सेवन योग्य है’, ऐसा अनुभव हुए बिना परिणाम अच्छे कैसे रह सकते हैं? इसलिए हम तत्त्वज्ञान की बात कर रहे हैं। आप यदि सच्चे तत्त्वज्ञाता बनें तो अधर्म में बैठे हुए होकर भी अधर्म के परिणामों से प्रायः बहुत सरलता से बच सकते हैं।

यदि शक्ति हो तो पंचेन्द्रिय प्राणिवध, महारंभ तथा महापरिग्रह आदि को छोड ही देना चाहिए। यदि अपनी चले तो हमें इन संयोगों से हट ही जाना चाहिए। इसलिए तो अपने यहां सुखी मनुष्य निवृत्ति लेकर सिद्धक्षेत्र में रहने लगते हैं और यथाशक्ति परिग्रह को घटाने के लिए परिग्रह का सदुपयोग करने लगते हैं। साधु भी नहीं बना जा सकता है और ऐसी निवृत्ति भी नहीं ली जा सकती है; मान लीजिए कि अभी ऐसी ही स्थिति है तो भी यह लोभ और यह ममता खटकती है? आपको बहुत लोभ या बहुत ममता न हो, फिर भी आपका स्थान ऐसा है कि कदाचित् बाजार में जाना पडे, परन्तु मन में क्या है? आप कह सकते हैं कि यह सब अच्छा तो नहीं लगता है, परन्तु संयोग ऐसे हैं कि यदि अभी छोड दें तो बहुत हानि हो जाए।यह सब मजबूरी से करना पड रहा है, इसका दुःख होना चाहिए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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