सोमवार, 4 जुलाई 2016

संतान की धार्मिक जिम्मेदारी भी समझें



संतान की व्यावहारिक जिम्मेदारी तो आप समझते हैं, परन्तु धार्मिक जिम्मेदारी नहीं समझते हैं। जो भगवान को, गुरु को और धर्म को नहीं मानते, उनकी बात अलग है; ऐसे लोग अपने और अपनी संतान के परलोक सम्बन्धी हित की चिन्ता न करें तो कोई अचरज की बात नहीं, परन्तु आप तो शुद्ध देवादि को मानने वाले हैं, फिर भी आपका पुत्र देव-गुरु-धर्म के स्वरूप के विषय में अज्ञानी रहे, इसकी आपको चिन्ता न हो तो आप में धर्म आया है, यह कैसे माना जाए? कतिपय गांवों में अंग्रेजी भाषा और व्यावहारिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी तो ग्रामवासियों ने चंदा कर के वैसी व्यवस्था की। क्योंकि, उसकी आवश्यकता महसूस की गई! इसके बिना चल नहीं सकता, ऐसा माना गया। वैसे ही लडका 20 वर्ष का हो गया, फिर भी उसे प्रतिक्रमणादि न आए तो क्या आपको उसका दुःख होता है? स्त्रियों को रसोई बनाना न आए तो खटकता है, परन्तु धर्म न आए तो खटकता है? लडका व्यवहार में होशियार न हो तो कलेजा कांपता है, परन्तु धर्म के सामने भी नहीं देखता हो तो आपको दुःख होता है? मिथ्यात्व अनेक रूप में नाचता है और नचवाता है। मिथ्यात्व हटे और सम्यक्त्व प्रकटे तो अनेक गुण स्वयमेव प्रकट होने लगते हैं।-सूरिरामचन्द्र

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