शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

अभक्ष्य का सेवन दुर्भाग्यपूर्ण



आप लोग यदि अपनी जरूरत के लिए हिंसा को धर्म मानो तो आर्य व अनार्य में भेद क्या है? आज बदलाव आया है। अनार्यदेश में आज हिंसा के खिलाफ आवाज उठ रही है, प्रोटेस्ट हो रहा है और हिंसा शांत करने के प्रयास हो रहे हैं। जबकि आर्य देश में पैदा हुए लोग हिंसा को बढाने के प्रयत्न कर रहे हैं। यहां से वहां जाकर आनेवाले, नकलची बनकर, पाप की क्रियाओं का प्रचार करते हैं। आज कई अच्छे घरों में भी अखाद्य-अपेय का विचार नहीं किया जाता है। कई जैनों के घर में भी शराब की बोतलें और अंडे, चटनी की तरह खाए-पिए जा रहे हैं। यह सब खाकर बलवान बनेंगे, यह मानते हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है! -सूरिरामचन्द्र

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