सोमवार, 4 जुलाई 2016

मन के परिणाम अधर्ममय न हों



आयुष्य धर्मस्थानों में बंधता है या सब जगह बंधता है? व्यापार करते हुए, भवन बनवाते समय, अथवा चाहे जो पाप क्रिया करते हुए आयुष्य बंध सकता है या नहीं? आयुष्य किसी भी जगह और किसी भी अवस्था में बंध सकता है। अतः यथासंभव परिणामों में बिगाड हो, ऐसे संयोगों में नहीं रहना चाहिए। यदि ऐसे वातावरण में रहना पडे तो परिणाम न बिगडें, ऐसी सावधानी रखनी चाहिए। आप साधु नहीं बन सकते और पेढी-घर आदि संभाले बिना छुटकारा नहीं, अतः यदि परिणामों को अच्छे न रख सको तो यह थोडी-सी धर्म-क्रिया दुर्गति में जाने से आपको नहीं रोक सकती। यदि दुर्गति से बचना हो और देव-गुरु-धर्म का प्राप्त संयोग न छूटे, ऐसी इच्छा हो तो धर्म-क्रिया पर बहुत अनुराग पैदा करना होगा और अधर्मक्रिया के राग के प्रति विराग पैदा करना होगा। भयंकर से भयंकर पाप-क्रिया करते समय भी परिणाम अधर्ममय न बन जाएं, ऐसी मनोवृत्ति विकसित करनी होगी। पंचेन्द्रिय प्राणिवध, महारम्भ, महापरिग्रह आदि नरक के कारणों का सेवन करने वाले भी नरक में नहीं गए और सद्गति को प्राप्त हुए, ऐसे उदाहरण हैं; परन्तु किस प्रभाव से? जैसी क्रिया, वैसे परिणाम होते तो वे अवश्य नरक में जाते, परन्तु उन्होंने मन के परिणामों को बिगडने नहीं दिया! किसी की भवितव्यता अच्छी थी, इसलिए परिणाम नहीं बिगडे और किसी ने प्रयत्न से अपने परिणामों को बिगडने नहीं दिया।-सूरिरामचन्द्र

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