आत्मा का ज्ञान हुए बिना, जितना अधिक पढा जाए उतना अधिक गंवारपन आता है। इसका
प्रत्यक्ष उदाहरण आज के कॉलेज हैं। आत्म-ज्ञान से रहित व्यक्तियों को ज्ञान देने
का यह परिणाम है। आत्मा का ज्ञान हो तो विवेक और मर्यादा का भान हो। बिना मर्यादा
के मनुष्य जंगली जानवर से भी बदतर है। आप अपने लोक-व्यवहार में ही देख लो, आज के युवकों की हालत सबके सामने
है, देश, समाज और परिवारों की हालत सामने
है।
मर्यादा रहेगी वहां तक धर्म रहेगा। महापुरुष भी किसी
की निश्रा में रहते थे, उनकी
आज्ञानुसार चलते थे। आज चारों ओर मर्यादा का दीवाला निकलता जा रहा है। कोई किसी की
सुनने या मानने को तैयार नहीं। पुत्र माता-पिता की बात नहीं मानते और विद्यार्थी
शिक्षक का उपहास करते हैं।
मर्यादा होने से घरों का संचालन भी ठीक तरह से होता
है। मर्यादा से रहित घरों में हमेशा झगडे हुआ करते हैं। सास-बहू में झगडा, देरानी-जेठानी में झगडा, भाई-भाई में और पिता-पुत्र में झगडा।
मिथ्याज्ञान पाकर आपके लडके आपके न रहें, यह आप सहन
कर सकते हैं, परन्तु
सम्यग्ज्ञान से आपके लडके आपके न रहकर साधु बन जाएं तो यह आप सहन नहीं कर सकते।
कैसी गजब की बात है? साधु
बनना तो दूर, अच्छे
संस्कारों के लिए भी कभी उन्हें धर्म स्थान में लाने का, सद्गुरुओं के सान्निध्य में लाने का प्रयास-प्रेरणा
करते हैं?
वर्तमान युग, हिंसक युग है। जिस युग को आप अच्छा मानते हैं, वह घोर घातकी युग है। लाखों जीव काटे
जाते हैं; वह भी कानून का ठप्पा
लगाकर। आप इस हिंसा को रोक भी नहीं सकते। यदि रोकने का प्रयत्न करो तो ‘देशप्रेमी’ न गिनाओ। कैसा विचित्र है यह युग !
आज युवकों की क्या दशा है, यह तो अखबार पढनेवाले आप लोगों को मालूम ही है, ये युवक अपने बाप के भी बाप बन गए हैं।
और प्रोफेसर के भी प्रोफेसर बन गए हैं। कॉलेजों के संस्थापक कॉलेजों को कैसे
चलावें, इस चिंता में हैं और नए
कॉलेज न खोलने के निर्णय पर आए हैं। दुनिया में पढे-लिखे गिने जानेवाले अपनी
होंशियारी का उपयोग भी दुनिया को परेशान करने में और स्वयं का स्वार्थ साधने में
कर रहे हैं।
आज मनुष्य, मनुष्य से घबराकर चलता है। जानवर से तो थोडी दूरी पर रहे तो निर्भय, परन्तु मनुष्य तो पीछे पडजाता है।
अतः उससे डरकर रहना पडता है। ऐसा यह युग है। इन हालात को बदलना इतना आसान नहीं है, लेकिन यदि मां-बाप बच्चे को
प्रारम्भ से ही धर्म के संस्कार दें तो कुछ मुश्किल भी नहीं है।-सूरिरामचन्द्र
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