भाषा, व्याकरण और गणित सिखाना, यह
वस्तुतः विद्यादान है ही नहीं। यह तो विद्या प्राप्त करने के साधन मात्र हैं।
भाषाज्ञान आदि से लिखना-पढना सीख लेने के बाद आखिर करना क्या है? हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भी लिखा
है, उसका अभ्यास करने की
क्षमता सिद्ध करनी है। उन ग्रंथों के रहस्यों को सोचने-समझने की विचार-शक्ति
अर्जित करनी है।
दरअसल शिक्षक का वास्तविक कार्य तो यह है कि यह भाषा
आदि सब सिखाने के साथ बालक को समझदार बनाए और उसमें ऐसी क्षमता विकसित करे कि वह
अपने आप संस्कारी बने। माता-पिता ने यदि योग्य संस्कारों का सिंचन किया होता तो
शिक्षक का आधा कार्य पूर्ण हो गया होता। फिर शिक्षक को केवल माता-पिता द्वारा
प्रदत्त संस्कारों को विकसित करने की ही जिम्मेदारी रहती।
भाषाज्ञान सिखाना यह वस्तुतः ज्ञान-दान नहीं, अपितु ज्ञान के साधन का दान है।
सद्गुण प्राप्ति का और अवगुण त्याग का शिक्षण, यही शिक्षा का साध्य है। परन्तु, आज तो प्रायः जैसी माता-पिता की
हालत है, वैसी शिक्षक की भी हालत
है। सच्चा शिक्षक मात्र किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं होता। सच्चा शिक्षक तो
विद्यार्थी में सुसंस्कारों का सिंचन करता है। मात्र किताबी ज्ञान तक सीमित रहने
वाला और विद्यार्थियों के सुसंस्कारों का लक्ष्य नहीं रखने वाला शिक्षक, शिक्षक नहीं, अपितु एक विशिष्ट मजदूर मात्र है।
यदि यहां मेरी दृष्टि के समक्ष मात्र कॉलेज के
प्रोफेसर होते तो मैं यह नहीं कहता, क्योंकि कॉलेज में विद्यार्थी निर्मित होकर आता है। वहां विद्यार्थी यदि अच्छा
हो और अध्ययन, अध्यापन
रुचिकर हो तो वह आगे बढेगा ही। लेकिन, आज कॉलेजों में जाकर देखो तो आपको दिखेगा कि कक्षाओं में प्रोफेसर का
मान-सम्मान ही बच नहीं पाता।
कितने तो कहते हैं कि हमारी इज्जत नहीं ले लेते वही
उपकार है। क्लास चलते हैं, प्रोफेसर
बोलते रहते हैं और विद्यार्थियों की मौजमस्ती भी चालू रहती है। आने वाले
विद्यार्थियों को पूर्णतः सुसंस्कारित करने की जिम्मेदारी प्रोफेसर की है, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे तो स्कूल में निर्मित
होकर कॉलेज में आए हैं। हालांकि आजकल के प्रोफेसर भी पैसा बनाने की तरफ ही ज्यादा
ध्यान देते हैं, बच्चों
में योग्यता विकसित करने की तरफ उनका ध्यान कम ही होता है, इसके लिए वे कई तरह के गलत हथकण्डे भी करते रहते हैं, यह उचित नहीं है।
हमारे सोच को और हमारी बेकार हो चुकी समग्र
शिक्षा-व्यवस्था को आज बदलने की जरूरत है। सब अपना कर्तव्य पालन करें और आने वाले
कल को सुसंस्कारी बनाएं, यही
शुभेच्छा है।-सूरिरामचन्द्र
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