अज्ञानी व्यक्ति भी यदि ज्ञानी बनने का प्रयत्न किया करे तो वह अवश्य ज्ञानी
बन सकता है। तत्त्व के स्वरूप को न समझने वाला व्यक्ति भी यदि मार्गानुसारी बन
जाता है और मार्गानुसारी बनकर सच्चे ज्ञानी का अनुसरण करता है, तो
वह तिर जाता है। जैसे मिल को चलाने वाले तो एक-दो होते हैं, परन्तु
उनकी आज्ञा में चलने वाले हजारों मजदूर उनके सहारे जीते हैं न?
बात यह है कि आप जीवादि तत्त्वों के विषय में अनजान तो हैं, परन्तु
यह अज्ञान आपको खटकता है क्या? स्वयं अनजान हो, परन्तु
स्वयं को विशेष बुद्धिमान (डेढ अक्ल) समझता हो, वह कैसे तिर सकता है? महापुरुष
फरमाते हैं कि,
‘अज्ञानमेव महाकष्टम्’ अज्ञान ही महाकष्ट है। अज्ञान
से बढकर और कष्ट क्या हो सकता है? सम्यग्दृष्टि में अनजानपना हो सकता है, परन्तु
उसका अज्ञान-विषयक ज्ञान उसे दुःख पहुंचाता है। अज्ञानी रहना उसे अच्छा नहीं लगता, ज्ञानी
की निश्रा में ही वह चलता है।
आपको व्यवहार में अज्ञान कितना खटकता है? तार आए और पढना न आए तो दुःख
होता है न? ऐसा विचार आता है न कि पढा होता तो अच्छा रहता! व्यवहार में आप ऐसे आवश्यक
ज्ञानी की आजीजी भी करते हैं न? धर्म के विषय में ऐसी स्थिति है क्या? धर्म
विषयक अज्ञान आपको खटकता है क्या? व्यावहारिक ज्ञान के प्रति जैसी ललक है, धार्मिक
ज्ञान या तात्विक ज्ञान के प्रति वैसी ललक आपकी है क्या?
सामान्य रूप से कहा जाता है कि देव में देवबुद्धि और अदेव में अदेवबुद्धि, गुरु
में गुरुबुद्धि और अगुरु में अगुरुबुद्धि तथा धर्म में धर्मबुद्धि और अधर्म में
अधर्मबुद्धि,
यह सम्यक्त्व है। इससे विपरीत मिथ्यात्व है। यदि समझें तो
इतने में सब तत्त्वार्थों का समावेश हो जाता है।
देव कौन और अदेव कौन,
गुरु कौन और अगुरु कौन, धर्म कौनसा और अधर्म कौनसा, यह
निर्णय हो जाने के बाद कौनसा निर्णय शेष रह जाता है? अज्ञानी को भी यह बात
निश्रा से ही माननी होती है। देव में अदेवबुद्धि और अदेव में देवबुद्धि आदि जैसे
मिथ्यात्व हैं,
वैसे अज्ञानी रहना अच्छा लगे तो यह भी मिथ्यात्व है।
तत्त्वों के विषय में अज्ञान आपको खटकता है? इस अज्ञान को हटाने के
लिए आपका प्रयत्न चालू है?
हम अज्ञानी हैं, अतः सुगुरु की निश्रा में ही
चलें, ऐसा आपका निर्णय है क्या? ज्ञानी सुगुरु जो कहे, उसे
मान लेने की आपकी तैयारी है क्या? आपको लगता है कि यह अज्ञान महाकष्ट का
कारण है और अब मुझे धर्म के विषय में अज्ञानी नहीं रहना है? -सूरिरामचन्द्र
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