मनुष्य के हृदय में रहे जहर को दूर करने का काम धर्म करता है। जिसके हृदय में
धर्म का प्रवेश होता है,
उसके हृदय में से जहर दूर हो जाता है। आज जो धर्म के नाम पर
लोगों में जहर पैदा किया जा रहा है, वह वास्तव में धर्म है ही नहीं, धर्म के
पाखण्ड में और वास्तविक धर्म में बड़ा फर्क है. आज मनुष्य के हृदय में इतना जहर उछल
रहा है कि जिसके कारण संहार के साधन बढ रहे हैं। आज मानव, मानवता
छोडकर राक्षस बनता जा रहा है। अपने स्वार्थ में बाधक बनने वाले का संहार किया जाता
है, उसमें वीरता और सेवा मानी जाती है। आर्य देश में यह मनोवृत्ति नहीं होनी चाहिए, परन्तु
आज वातावरण बिगड रहा है।
यह भव भोग के लिए नहीं,
त्याग के लिए है। दुनियावी पदार्थों की ममता दूर हो और
आत्म-सुख प्रकट करने की कामना उत्पन्न हो, तब मानव, दानव
के बजाय देव बन सकता है। आपको क्या बनना है, इसका निर्णय आप ही कीजिए। पाप
से उपार्जित सभी वस्तुएं यहीं रहने वाली है और पाप साथ चलने वाला है, यदि
ऐसा विश्वास हो तो पाप से बचने के लिए प्रयत्नशील बनो, स्वार्थी
मनोवृत्ति का त्याग करो। स्वार्थ पाप कराता है, ‘पाप से दुःख और धर्म से सुख’, इस
बात पर आपको विश्वास है,
इसलिए सीधी बात करता हूं कि पाप छोडो और धर्म का सेवन करो, जिससे
आपका दुःख चला जाए और सुख प्राप्त हो।-सूरिरामचन्द्र
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