रविवार, 14 फ़रवरी 2016

अयोग्य को उपदेश का निषेध



शास्त्रकार कहते हैं कि जगत के जीवों की अंतर्दृष्टि खुल जाए वैसा प्रयत्न करो, क्योंकि अंतर्दृष्टि के अभाव में सच्चे उपकार के लिए किया गया प्रयत्न भी निष्फल ही जाता है। उल्लू को दिखाई दे, यह ताकत सूर्य में भी नहीं है। सूर्य के उदय में लोगों को आनंद होता है, किन्तु उल्लू को दुःख होता है। इसी प्रकार कई आत्माओं को सच्चे साधु का एकांत आत्म-हितकर उपदेश भी पसंद नहीं आता। उन आत्माओं को सुखी बनाने की ताकत अनंतज्ञानी परमात्मा में भी नहीं है। अतः अंतर्दृष्टि खुल जाए वैसा प्रयत्न करना चाहिए।

जिसकी भवितव्यता अच्छी होती है, उसी की अंतर्दृष्टि खुलती है। निकट भविष्य में जिसका कल्याण होने वाला हो, उसी को अंतर्दृष्टि खोलने वाला उपदेश अच्छा लगता है। शास्त्रकारों ने अयोग्य-अपात्र को उपदेश देने का निषेध किया है। अयोग्य आत्माओं को चाहे जितना उपदेश दिया जाए, उसे लाभ होने के बजाय नुकसान ही होता है। आज समाज में चार तरह का वर्ग है। पहले तो जगत में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो सच्चे साधु का उपदेश सुनते ही नहीं हैं। दूसरा, रूढचुस्त वर्ग सुनता है, लेकिन एक कदम भी आगे नहीं बढता है। तीसरा, वर्तमान युग का पंडित वर्ग है जो सुनता तो है, लेकिन दूसरों को उपदेश देने के लिए अथवा दुनिया में अपने पांडित्य का प्रदर्शन करने के लिए सुनता है। धर्म की आराधना के लिए ये तीनों वर्ग बेकार हैं। हमें तो ऐसा चौथा वर्ग चाहिए, जिसकी अंतर्दृष्टि खुल गई हो अथवा खुलने की तैयारी में हो।

सभा में हम उसी वर्ग को देखते हैं। सभा में हमें तभी विशेष आनंद आता है, जब यह चौथा वर्ग श्रोता के रूप में हो। अर्थी के पास साधन-सम्पन्न दाता खिलता है। उसी प्रकार योग्य श्रोता मिले तो बोलने वाले की शक्तियां भी बढ जाती हैं। धर्म श्रवण के लिए आए आत्म-कल्याण के साधक को त्याग की बात पसंद न आए, यह नहीं हो सकता। धर्म की बात में घर छोडने की बात आएगी, परन्तु लक्ष्मी बढाने की बात नहीं होगी, अपितु उसका सदुपयोग करने की बात आएगी। अन्तर्दृष्टि खुले बिना अथवा खुलने की योग्यता प्राप्त हुए बिना, यह बात पसंद आने वाली नहीं है। अतः मुख्य बात यही है कि अंतर्दृष्टि खोलने के लिए प्रयत्नशील बनो।

अन्तर्दृष्टि खोलने के लिए प्रतिदिन प्रातःकाल और रात्रि में सोने से पूर्व थोडे समय के लिए यह विचार करें कि मैं कौन हूं? कहां से आया हूं? मैं क्या करता हूं? और वर्तमान में चल रहा मेरा आचरण मुझे कहां ले जाएगा?' इन चार बातों का प्रतिदिन विचार करो। इन बातों पर विचार करते-करते एक दिन अंतर्दृष्टि खुलने लगेगी और बहिर्दृष्टि दूर हो जाएगी। उसके बाद सद्गुरु की खोज और वीतराग परमात्मा की सेवा किए बिना चैन नहीं पडेगा।-सूरिरामचन्द्र

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