गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

दुःख का मूल पाप है



इस जगत में सभी प्राणी सुख के अभिलाषी हैं। अनंत उपकारी अनंतज्ञानी महापुरुषों ने जगत के जीवों को दुःख से मुक्त बनने और सुखी बनने का मार्ग बतलाया है। वह मार्ग आज भी विद्यमान है, परन्तु जगत के जीव गतानुगति वृत्ति वाले हैं। इस कारण दुःख-मुक्ति और सुख-प्राप्ति का पूरा निर्धार करते ही नहीं हैं। अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं कि सुख पाने और दुःख से मुक्त बनने के लिए अनेकानेक लोग रात-दिन मेहनत करते-करते मर गए, किन्तु न तो उनका दुःख गया और न ही उन्हें सच्चा सुख मिला। यहां तक कि जिन्दगीभर हर तरह के प्रयत्न करके, उन्होंने जो-जो वस्तुएं प्राप्त की, वे वस्तुएं भी उनके साथ नहीं गई, उनके साथ तो सिर्फ पुण्य और पाप ही गया।

जगत के जीव यह सब दृश्य अपनी आँखों के सामने देखकर भी यह विचार तक नहीं करते हैं कि एक दिन हमें भी इसी तरह जाना पडेगा और सुखी बनने की इच्छा होने पर भी यहां किए गए पापों के कारण दुःखी होना पडेगा। "पाप से प्राप्त वस्तुएं यहां रह जाती हैं और पाप साथ चलता है", यह बात जानने के बावजूद भी कुछ भी विचार किए बिना, सभी की तरह स्वयं भी नाशवंत पदार्थों को पाने के लिए पाप करता रहता है, क्या यह जैसी-तैसी मूढता है? यह मूढता दूर न हो और सुख व दुःख के वास्तविक कारणों को जानकर, ज्ञानियों द्वारा निर्दिष्ट मार्ग को जानने का प्रयत्न न हो, तब तक हमें दुःख-मुक्ति और सुख-प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा हो तो भी क्या फायदा?

दुःख-मुक्ति और सुख-प्राप्ति की अभिलाषा को सफल बनाना हो तो गतानुगतिकता की मूढता का त्याग कर विवेकी बनना चाहिए और जगत के जीवों को सुख-प्राप्ति का मार्ग बताने वाले पूर्ण ज्ञानी तारक परमात्मा की आज्ञापालन के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए। दुनिया के अनुसार चलोगे तो दुनिया के जीवों की जो हालत हुई है, वह आपकी भी होगी। यह स्पष्ट बात है।

"दुःख का मूल पाप है", इस बात को कौन नहीं जानता? "पाप बिना दुःख नहीं", इस बात में कोई मतभेद नहीं है। "पाप करने से दुःख आता है" तो फिर दुःख से बचने और सुख पाने के लिए पाप करना, यह क्या? इसमें कोई समझदारी है? विवेक पूर्वक वस्तुस्थिति को समझने का प्रयत्न करो और फिर समझ पूर्वक गलत मार्ग को छोडकर सच्चे मार्ग को स्वीकार करो। सच्चे मार्ग को स्वीकार करने के बाद, उस मार्ग की आराधना के लिए खूब प्रयत्न होगा, तभी सच्चा कल्याण हो सकेगा। सच्चे सुख को पाना हो तो प्रयत्न पूर्वक उसे प्राप्त किया जा सकता है। दुःख-मुक्ति और सुख-प्राप्ति का मार्ग नहीं है, ऐसी बात नहीं है। मार्ग तो है, पर उस पर चलें तभी तो लाभ हो सकता है! -सूरिरामचन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें