बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

कडवी बात भी हितकर हो तो जरूर कहना चाहिए



अनंत उपकारी अनंतज्ञानी फरमाते हैं कि अर्थ और काम को त्याज्य और मोक्ष-साधक धर्म को उपादेय मानो।परन्तु, आज अर्थ और काम का ही शिक्षण दिया जाता है, अर्थ और काम के दासत्व में ही सुख माना जाता है। आत्मा के स्वरूप और आत्मा के मोक्ष का विचार भी नहीं आता है। आज जहां धर्म का भी अर्थ-काम के साधन के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता हो, वहां अर्थ-काम हेय है और मोक्ष-साधक धर्म ही उपादेय है’, यह बात उपदेश में कही जाए तो पसंद किसको आए?

आपको पसंद आए या न आए, परन्तु जो हितकर बात है, वह अवसर देखकर कहनी ही चाहिए, जिससे कोई सुयोग्य आत्मा हो तो उसे लाभ हो जाए। योग्य आत्मा को सत्य का प्रकाश मिल जाए तो उसमें आत्म-हित की भावना जागृत हो सकती है। कडवी बात भी यदि हितकर हो तो उसे कहने में ही दया है। मां अपने बीमार पुत्र को दबाव डालकर भी कडवी दवाई पिलाती है, फिर भी वह निष्ठुर नहीं कहलाती है। उसी प्रकार साधु भी वीतराग परमात्मा के द्वारा निर्दिष्ट धर्म को जीवन में आत्मसात् कर जगत में उस धर्म का प्रचार करने वाले होते हैं। वे साधु यदि आपको सच्ची व हितकारी बात न कहकर आपको खुश करने के लिए दूसरी ही बातें करें, चिकनी-चुपडी करें, तो कहना पडेगा कि वे साधु परमात्मा के बताए मार्ग के प्रति वफादार नहीं हैं। इतना ही नहीं, वे दयाहीन भी हैं, क्योंकि यदि दयालु होते तो दूसरों के रोष के भाजन बनकर भी हितकर सच्ची बात ही कहते। जब सच्ची बात सामने वाले के गले उतरेगी तो अवश्य ही उसका रोष उतर जाएगा और वह उपकार मानेगा।

साधु को तो सच्ची हित-शिक्षा ही देनी चाहिए और आपको भी अपनी भलाई के लिए सुसाधुओं की सच्ची हित-शिक्षा को जीवन में आत्मसात् करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। यहां हर बात में हांकह दो और फिर घर जाने के बाद आचरण में लाने के लिए कुछ भी प्रयत्न न करो तो यह नुकसान साधु का नहीं, आप के स्वयं का है, क्योंकि सुधर्म की साधना नहीं करोगे तो आप ही सच्चे सुख से वंचित रहोगे। सुसाधुओं को तो आप अमल करें या न करें, फिर भी हितकर भावना के कारण एकांत लाभ ही है। अर्थ-काम की वासना बढाने वाले, अर्थ-काम को उपादेय मानने वाले, अर्थ-काम से कल्याण है, ऐसा उपदेश देने वाले न देव हैं, न गुरु हैं और न ही वो धर्म है। मोक्ष के लिए ही धर्म का आचरण आवश्यक है। अतः अन्य कामनाओं का त्याग कर एक मात्र मोक्ष-साधक धर्म के आचरण में ही तत्पर बनो। जो आत्माएं मोक्ष-साधक धर्म के आचरण में उद्यमशील बनेंगी, वे आत्माएं क्रमशः दुःखरहित सम्पूर्ण शाश्वत मोक्ष सुख प्राप्त करेंगी।-सूरिरामचन्द्र

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