आजकल, उच्च समझे जानेवाले कुलों में
भी कैसी स्थिति पैदा होती जा रही है? लडका धर्म करता है, या धर्म करने के लिए तैयार होता है तो पिता उसमें बाधक बनता है, परन्तु लडका धन और भोग के लिए चाहे जो उल्टे-सीधे काम करे, तो भी उसका पिता अन्याय-अनीति करते हुए बेटे को नहीं रोकता है। अब तो ऐसा भी
कह सकता हूं कि न रोक सकने का वातावरण पैदा हो गया है। पहले अच्छे कुटुम्बों में
यह स्थिति थी कि ‘धर्म करने का मन होना, कोई सरल बात नहीं है, ऐसा वे जानते थे। इसलिए लडके
को धर्म करने का मन होने की बात जानकर उन्हें प्रसन्नता होती थी। जबकि वे ही
मां-बाप आदि लडका धन-भोग के विषय में अन्याय-अनीति के मार्ग पर न चला जाए, इसकी सावधानी रखते थे। आज भी कतिपय मां-बाप लडकों की चौकीदारी तो करते हैं, परन्तु वह केवल इसलिए करते हैं कि ‘अपना कमाया हुआ धन लडके
खर्च न कर दें !’ लडका अपना कमाया धन अच्छे मार्ग में खर्च
करे,
इसमें भी आपत्ति! उनमें धन की गरमी होती है। यदि वे धर्म की
गरमी का अनुभव करें तो उनमें उदारता आ सकती है।-सूरिरामचन्द्र
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