वेश्या को रूपवान कहनी हो तो साथ में कहना पडेगा कि रूपवान तो है, परन्तु
अग्नि की ज्वाला जैसी है। अनेकों को फंसाने वाली है। पैसों के खातिर जात को बेचने
वाली है और निश्चित किए गए पैसे न दे तो उसके प्राण भी लेने वाली है। पूरी बात न
करे और सिर्फ रूप की प्रशंसा करे, वह कैसे चले? उससे
तो अनेक लोग फंसें उसकी जोखिमदारी किसकी? होशियार मनुष्य धोखेबाज हो तो
सिर्फ उसकी होशियारी की प्रशंसा हो सकती है? या साथ में कहना पडे की
सावधान रहना! दान देने वाला तस्करी-चोरी का धंधा करता हो तो उसके दान की बात कहते
समय यह सावधानी दिलाना जरूरी है कि तस्करी और चोरी करना अपराध है। दुल्हे की
प्रशंसा करे,
परंतु ‘रात्रि-अंधा’ हो
यह बात छिपाएं,
कन्या पक्ष कन्या की प्रशंसा करे, परंतु
उसकी शारीरिक त्रुटियां छिपाएं तो कईयों के संसार नष्ट होने के उदाहरण हैं न? वहां
कहें कि, ‘हम तो गुणानुरागी हैं!’
यह चलेगा? इतिहास में विषकन्या की बातें आती हैं। वह
रूप-रंग से सुंदर,
बहुत बुद्धिमान, गुणवान भी अवश्य, परन्तु
स्पर्श करे उसके प्राण जाएं! उसके रूप-रंग की प्रशंसा करें, परंतु
दूसरी बात न करें तो चलेगा?
गुणानुरागी को प्रशंसा करते हुए अत्यन्त विवेक रखना पडता
है।-सूरिरामचन्द्र
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