मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

उदारता का महत्त्व


आत्मा में प्रकट सच्ची उदारता का गुण एक ऐसा विलक्षण गुण है कि उसके योग से अन्य अनेक गुण सरलता से प्रकट हो सकते हैं। यदि सचमुच उदारता का गुण आत्मा में आ जाए तो दूसरे उत्तम गुण स्वतः ही उसके साथ चले आते हैं। उदार आत्मा की वृत्ति एवं प्रवृत्ति में सद्विचारों की सुन्दर शीतल छाँया सदा बनी रहती है और वह आत्मा को सांसारिक इच्छाओं के निरोध एवं सदाचार को अंगीकार करने के लिए प्रेरित करती रहती है। इस तरह जहां उदारता, सदाचार, सहिष्णुता और सद्विचार ये चारों उत्तम गुण मिल जाते हैं, वहां क्या कमी रहे?

सचमुच, इन गुणों वाले पुण्यात्मा इस जीवन में सबकुछ कर सकते हैं। उदारता का यह गुण केवल अपनी आत्मा के लिए ही हितकर नहीं है, अपितु अन्य असंख्य आत्माओं के लिए भी अत्यंत उपकारी सिद्ध हो सकता है। योग्य आत्माएं उदारता गुण से युक्त आत्मा के संसर्ग से स्वयं भी गुण-सम्पन्न बनती हैं। ऐसे विलक्षण और उपकारी गुण को जो आत्माएं अपने जीवन में उतार सकती हैं, जिन आत्माओं में यह गुण विकसित होता है, वस्तुतः वे आत्माएं ही इस संसार में महान् माने जाने योग्य हैं। महापुरुषों के रूप में वास्तविक ख्याति ऐसी पुण्यशाली आत्माएं ही प्राप्त कर सकती हैं। यह उदारता का गुण स्व-पर उपकारक होने से, अन्य अनेक गुणों को खींच लाने वाला होने से और आत्मा को महान बनाने वाला होने से, इसका महत्त्व स्वयमेव सिद्ध है। सच्ची उदारता का स्वरूप समझकर यदि यह गुण अपनी आत्मा में प्रकट नहीं हुआ हो तो इसे प्रकट करने के लिए और यदि प्रकट हो चुका हो तो इसे विकसित करने के लिए प्रत्येक आत्मा को प्रयत्नशील बनना चाहिए।

सबसे पहले हम यह सोचें कि आज का समझदार जगत महापुरुष किसको मानता है? आज का जगत महापुरुष में किन-किन गुणों की अपेक्षा करता है? सामान्यतया हम यह सोचें कि जिसे हम महापुरुष मानें, उसका मुख्यतया स्वभाव कैसा होना चाहिए? कोई भी प्राणी चाहे स्वजन हो या परजन हो, मित्र हो या शत्रु हो, उसने अपनी भलाई की हो अथवा बुराई, मनुष्य हो अथवा पशु हो, बडा हो अथवा छोटा हो, सुखी हो अथवा दुःखी हो; उन सब की, संसार के समस्त प्राणियों की भलाई करने की उदार-वृत्ति, सच्ची भावना जिस मनुष्य में हो, वह महापुरुष बनने के योग्य अथवा महापुरुष के रूप में पूजे जाने योग्य है। किसी में भी आत्म-हितकारी अच्छी बात देखे तो उसे देखकर वह प्रसन्न हो, किसी भी दुःखी प्राणी को देखकर उसे दया आए और उसका कष्ट निवारण करने के लिए यथासंभव प्रयत्न करने में कोई कमी न रखे, वह महापुरुष बनने के योग्य है। जिन पुण्यात्माओं का जीवन उदारता, सदाचार, सहिष्णुता, सद्विचार, कल्याण-भावना आदि से ओतप्रोत हो, वे ऊॅंची आत्माएं हैं और हमें अपनी आत्मा को ऐसा ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। -आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें