शनिवार, 28 दिसंबर 2013

जैनत्व का पर्याय है परोपकार


जैन केवल परोपकार की भावना से युक्त होता है, यही नहीं है। उसकी परोपकार भावना सूखी नहीं होती, केवल बातों तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि जैन मात्र की वृत्ति उस परोपकार भावना को अपने आचरण में ढालने की होती है। जैन परोपकार करने में आनंद मानता है, उसे परोपकार करने में रुचि होती है। इसीलिए तो वह नित्य श्री वीतराग परमात्मा से स्वयं में परोपकार भावना जागृत करने के लिए याचना करता है। श्री वीतराग परमात्मा के समक्ष प्रार्थना करते समय जैन नित्य यह याचना भी करता है कि हे भगवन्! आपके प्रभाव से मुझ में परोपकार प्रियता जागृत हो।’ ‘जय वीयरायसूत्र में आप नित्य परत्थकरणंचबोलते हैं न? यह बोलकर आप नित्य परोपकारी बनने की अपनी कामना ही तो व्यक्त करते हैं न? आप परोपकारी होना चाहते हैं। क्या आपने अपना ऐसा स्वभाव बनाया है कि नित्य थोडा बहुत भी उपकार किए बिना मुझे नहीं रहना है?

आपको सुखी, सम्पन्न व भला मनुष्य समझकर यदि कोई आप से किसी वस्तु की अथवा किसी कार्य को कराने की याचना करे तो उससे आपको हर्ष होना चाहिए। आपको यह लगना चाहिए कि मुझे परोपकार करने का यह उत्तम अवसर प्राप्त हुआ, यह मेरा अहोभाग्य है।’ ‘परोपकार करने के लिए अवसर ढूंढना पडता, उसके बदले परोपकार करने का सुअवसर स्वतः ही प्राप्त हो गया, यह मेरा अहोभाग्य है’, यह भावना जैन में होनी चाहिए। कोई यदि यहां कहे कि मुझ में परोपकार की भावना ही नहीं है तो उसे यह कहना पडेगा कि तुझ में जैनत्व का भी सर्वथा अभाव है।परोपकार जैनत्व का पर्याय है।

परोपकार करने का अवसर प्राप्त होने पर आनंद तो न हो, पर उसे आफत न माने तो भी यथेष्ट है, ऐसी भी आपकी स्थिति है? सबकी ऐसी स्थिति नहीं होती, परन्तु यदि सचमुच ऐसी स्थिति हो तो आपके मन में यह बात आनी चाहिए कि हम में भगवान का सेवक कहलाने की योग्यता भी नहीं है।संसार किसी भी तरह जीवन यापन कर रहा हो, पर हम से तो इस तरह जीवित नहीं रहा जाएगा। आपको यह सोचना चाहिए कि हम किसके सेवक हैं? हम उस महा परोपकारी परमात्मा के सेवक हैं। मुझे ऐसे परोपकारी भगवान का सेवक बनने का, कहलाने का सुअवसर मिला, यह मेरा अहोभाग्य है। यह सोचकर, यह समझकर यदि आप सेवक कहलाओ तो भी आपका कल्याण हो जाए। इतना ज्ञान हो तो, यदि कोई किसी उचित वस्तु के लिए आपसे याचना करे और उसे यदि उस समय आप इनकार करें तो जीभ कटने जैसा होगा। परोपकार करने योग्य सामग्री उपलब्ध हो, परोपकार करने का अवसर हो तो भी यदि हमसे परोपकार न हो सके तो लगेगा कि इस तरह परोपकार न करने में तो मेरी वीतराग परमात्मा की सेवा लज्जित होती है, मेरा जैनत्व कलंकित होता है।-आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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