जो युवक अपने बल का प्रयोग दूसरों को सताने में करता हो, वह युवक सचमुच युवक नहीं है; अपितु अपने उस कार्य के प्रताप
से वह राक्षस तुल्य लगता है। आज विश्व में जो उपद्रव चल रहे हैं, वे इस तथाकथित युवावस्था के नाम पर उन्मत्त बनकर भटकने वाले राक्षसों के
प्रताप से हैं। जिस देश में युवक बहुसंख्यक हों, युवकों का बोलबाला हो क्या उस देश में बिचारे निर्बल दुःखी होंगे? जिस नगर में पुलिस अधिक हो, उस नगर में चोरियां कम होनी
चाहिए या अधिक? जहां युवक नूतन सृष्टि का
सर्जनहार माना जाता हो, वहां होना क्या चाहिए और हो
क्या रहा है? आप अपने आपको युवक मानते हैं तो
सोचो कि आपने किया क्या और करना क्या चाहिए था? युवक किधर जा रहे हैं, इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो
परिणाम अच्छे नहीं निकलेंगे, यह मानकर चलिए। इसलिए आज युवा
पीढी को संभालने की सबसे ज्यादा जरूरत है।
‘काले सिर वाला मानव भला क्या नहीं कर सकता?’ यह बात कही जाती है तो यह किस विचार से कहा गया होगा? आज लोग कहते हैं कि ‘जहां युवक अधिक संख्या में
एकत्र हों, वहां से चला जाना चाहिए, क्योंकि जब कोई युवक तर्क करते-करते परास्त होने लगेगा तो वह अंत में आपकी
पगडी (इज्जत) उछालने की नीचता तक कर बैठेगा।’ आज के युवकों की यह इज्जत? यह प्रतिष्ठा? यह ख्याति? यह समस्त युवा वर्ग पर कलंक है।
जिस सभा-समुदाय में युवक हों, वहां से क्या बुजुर्गों को
भागना पडे? बालक तो बिचारे कहीं दब जाएं, क्योंकि वे ऐसे माहौल में सीखेंगे भी तो क्या? इस प्रकार की पैठ वाले युवकों का संसार में साम्राज्य हो जाए तो वे कैसी नवीन
सृष्टि का सृजन करेंगे?
आज क्रान्ति शब्द खूब फैल गया है। बस, क्रान्ति करो, विद्रोह जगाओ, परन्तु क्रान्ति का सही अर्थ क्या है? अरे, आज तो क्रान्ति की डींग हाँकने
वालों में से, क्रान्ति का नारा लगाने वालों
में से अधिकांश तो उसका भावार्थ तक नहीं जानते। क्रान्ति किसे कहते हैं? क्रान्ति की संभावना कहां है? किसकी क्रान्ति होती है? क्रान्ति में से किसका सृजन होना चाहिए? कुछ पता नहीं! युवकों की प्रतिष्ठा ऐसी होनी चाहिए कि ‘वे स्वयं अपना बलिदान देकर भी बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों की जान बचाएंगे, धर्म पर आँच नहीं आने देंगे।’ अपने विचार दूसरों पर थोपने हैं, पर किस तरह? क्या वकील अपना पक्ष न्यायाधीश
को जंचाने के लिए स्टेज पर चढकर उसका गला पकडता है? युवक यदि अपने विचारों से लोगों को सहमत करना चाहते हों तो उनका व्यवहार कैसा
होना चाहिए? विद्रोह सुख का साधन न होकर, सब कुछ जला कर राख कर देने वाला साधन है। आप अपने विचारों को इतना प्रौढ और
परिपक्व बनाइए कि समस्त संसार आपकी ओर झुक जाए, लोग स्वयंस्फूर्त आपकी शरण आएं। -आचार्यश्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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