सोमवार, 10 अगस्त 2015

युवावस्था अभिशाप न बने



युवावस्था धर्म की, आत्म-कल्याण की एवं सत्कार्य करने की प्रवृत्तियों के लिए प्रबलतम साधन है। जिस युवा अवस्था को ज्ञानियों ने साध्य की सिद्धि के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी, उस अवस्था के मनुष्यों की आज की दशा अत्यंत लज्जाजनक है, सुशोभित करने वाली नहीं है। यह साधन कहीं जीवन का विनाश करने का साधन नहीं बन जाए, यह हम समझाना चाहते हैं। साथ ही साथ यह भी बता देना चाहते हैं कि ऐसे सुन्दर साधन का यदि दुरुपयोग किया गया तो परिणाम स्वरूप आत्मा का भयंकर विनाश होने के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। जिस युवावस्था को हम अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं, वह युवावस्था प्रत्येक को निर्भय बनाने वाली होनी चाहिए। उत्तम वस्तु वह है जो आशीर्वाद सिद्ध हो, अभिशाप नहीं। इसीलिए तो कहा गया है कि यह अत्यंत गहन युवावस्था जिसने निष्कलंक व्यतीत कर ली, अपनी प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दी, उसने सम्पूर्ण मानव-जीवन का फल प्राप्त कर लिया।

ज्ञानियों की दृष्टि से युवावस्था साधना के लिए जितनी उत्तम है, संसार की दृष्टि से यदि उसका दुरुपयोग किया जाए तो वह अधम मार्ग की ओर ले जाने वाली है। युवावस्था का आज अधिकांशतः सदुपयोग हो रहा है, ऐसा कोई कहेगा? यदि संसार धर्मी होता तो धर्म की इस तरह बातें करने की आवश्यकता ही नहीं होती। यदि युवावस्था को सार्थक करना चाहो तो उसका सदुपयोग करने में लगो। दुष्कृत्य कभी नहीं करने चाहिए और प्राण गले में आ जाएं तब भी अपने कर्तव्य से च्युत नहीं होना चाहिए। सुकर्तव्य और अकर्तव्य का भेद समझकर विवेक पूर्वक सुकर्तव्यों को अंगीकार करना चाहिए। पौद्गलिक भाव से तृष्णा की प्रवृत्ति अकर्तव्य है और आत्म-स्वरूप का विकास सुकर्तव्य है। सांसारिक पदार्थों की साधारण इच्छा भी पतन कहलाती है। योग्य के सम्पर्क से सांसारिक पदार्थों का सदुपयोग भी कर डाले तब भी उन पदार्थों को सदुपयोग का निश्चित साधन नहीं कह सकते हैं।

काले सिर वाला मानव संसार में क्या नहीं कर सकता?’ इन शब्दों का प्रयोग करने वाला व्यक्ति यदि केवल संसार में तूफान खडा करने की इच्छा से ये शब्द कह रहा हो तो उन्हें हम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। हमें तो केवल संसार के समस्त वाक्यों में से सदुपयोग कराने वाले वाक्यों का ही समर्थन करना है। जो लोग इसके विपरीत कर रहे हैं, वे गलत हैं। विरोधी भावना से अलग हटकर उसका सदुपयोग कैसे हो सकता है, यही हम बताना चाहते हैं। सभी वाक्यों को हम लाभ के सकारात्मक और सृजन के दृष्टिकोण से ही लेना चाहते हैं।

युवावस्था आनन्द दायक है, यह सोचा हुआ कार्य पूर्ण करने में अत्यंत उपयोगी है; परन्तु यदि वह गलत रास्ते पर जा रही हो तो उसे सही मार्ग पर लाने का हमारा प्रयत्न है। प्रशस्त भाव से ही युवावस्था आशीर्वाद बन सकती है।-सूरिरामचन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें