अनंत उपकारी भगवान श्री जिनेश्वरदेवों के शासन में बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन
को इस असार संसार में इतना अधिक दुर्लभ और साथ ही साथ इतने अधिक महत्त्व का माना
गया है कि इस प्रकार की महत्ता और दुर्लभता, इस जीव के लिए और किसी भी
वस्तु की नहीं मानी गई है। बोधि प्राप्त होने के पश्चात चारित्र आदि की प्राप्ति
को भी दुर्लभ बताया गया है,
परन्तु बोधि तो एक ऐसी दुर्लभ एवं महत्त्व की वस्तु है कि
इसके योग से ही ज्ञान,
सम्यग्ज्ञान की कोटि में और चारित्र, सम्यक
चारित्र की कोटि में गिना जाता है। इसके अभाव में ज्ञान, सम्यग्ज्ञान
की कोटि में नहीं गिना जाता और चारित्र भी सम्यक चारित्र की कोटि में नहीं गिना
जाता।
संसार में कदाचित चाहे जितना सुख मिल जाए तो भी जहां तक आत्मा को बोधि की
प्राप्ति नहीं होती,
वहां तक अच्छे से अच्छा जन्म मिल जाने पर भी वह निष्फल होता
है। इस संसार में अब तक हमारे अनन्त जन्म निष्फल गए हैं, वे
एकमात्र इस बोधि के अभाव के कारण ही! इस जन्म में भी यदि सम्यग्दर्शन की बोधि की
प्राप्ति न की जा सकी,
तो अनंत जन्मों की तरह यह जन्म भी निष्फल हो जाएगा। इतनी सब
सामग्रियों का सुयोग मिलने पर भी यदि बोधि प्राप्त न हो तो, क्या
कहा जाए? इतनी सामग्री वाले हम लोगों का तो यह निर्णय होना चाहिए कि बोधि प्राप्त किए
बिना इस जीवन को हम जाने नहीं देंगे।
दूसरों की दृष्टि केवल सांसारिक सुख की तरफ है और इससे वे राज्यादि
ऋद्धि-सिद्धि को दुर्लभ कह कर रुक जाते हैं; परन्तु यह सब सामग्री वस्तुतः
दुर्लभ नहीं है। ज्ञानी तो कहते हैं कि सचमुच दुर्लभ वस्तु तो सम्यग्दर्शन है।
सम्यग्दर्शन की अपेक्षा अन्य सब सांसारिक वस्तुएं सुलभ हैं। ऐसा होते हुए भी, मान
लीजिए कि राज्यादि बडी ऋद्धि-सिद्धियां और भोग सुखों की सामग्रियां दुर्लभ हैं और
पुण्य के कारण वे सब मिल भी गईं; परन्तु उसका परिणाम क्या? ये
सब मिल जाए और सम्यग्दर्शन न हो तो क्या सही रूप में सुखी हो सकते हैं क्या? सम्यग्दर्शन
के अभाव में ये सामग्रियां सुख देंगी या दुःख? सुख देंगी तो कितना और दुःख
देंगी तो कितना देंगी?
सुख तो नाम मात्र का और दुःख का पार नहीं!
जहां तक सम्यग्दर्शन प्राप्त न हो और उसके कारण जहां तक दिल संसार में रंजित
रहा करता है,
वहां तक संसार में भटकना भी चालू रहने वाला है। इसमें यदि
क्वचित सुख मिलता है तो वह स्वप्न तुल्य है और शेष तो दुःख ही दुःख है। दिल में से
संसार जब तक नहीं निकलता है, तब तक दुःख चालू रहने वाला है और संसार
खडा का खडा रहने वाला है। आपको सुखी होना है या दुःखी? यदि
सुखी होना हो तो इसके लिए सबसे पहले एक ही वस्तु आवश्यक है और वह है सम्यग्दर्शन।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें