दुःख
में भी सुख का अहसास
सम्यग्दृष्टि को जो कुछ अच्छा मिलता है, उससे वह अपने मोक्ष को साधता
है और दूसरों के लिए भी मुक्ति के साधन में उपयोगी होता है। तात्पर्य यह है कि
जिसे बोधि लाभ हुआ है,
उसे संसार की अच्छी और विपुल सामग्री मिले तो उसमें उसका भी
कल्याण है और साथ ही साथ दूसरों का भी कल्याण है। जबकि, जिनको
बोधि का लाभ नहीं हुआ है और केवल संसार का ही रस है, उन्हें यदि अच्छी
सामग्री मिल जाती है तो वह उनको और दूसरे को भी प्रायः महा हानिकारक ही होती है!
आपके खाने-पीने-ओढने आदि की, आपके धन-दौलत की यदि साधु चिन्ता करें, तो
उन्हें कहते हो कि ‘यह काम आपने कैसे ले लिया? इस संसार में पडे हुए जीवों में रोटी, बंगला, पैसा, धंधा
आदि की भीख कौन नहीं मांगता? ऐसी भीख तो हम अनादिकाल से मांगते आए हैं
और इसके भिखारी होने के कारण तो संसार में हम अनंतकाल से भटक रहे हैं। अतः कृपा
करके आप हमारे लिए इन सब की भीख न मांगें! इस भीख को मांगते-मांगते तो हम पामर बन
गए हैं। और आप भी हमारे लिए यह भीख मांगने लगे तो हमारा क्या होगा? आपको
यदि हम पर उपकार करना है तो ऐसा कहिए कि ऐसी भीख मांगने का हमारा दुःख सदा के लिए
मिट जाए और हमें यह समझा दीजिए कि ऐसी-ऐसी चीजों के प्रति नजर रखी, इसके
कारण दुःखी हुए हो;
अतः अब इन चीजों पर दृष्टि डालना भी छोड दो और दुःख को भी
सुख से भोग लो। इस तरह आप हमको ऐसे बना दीजिए कि हम हमारे कर्मों से प्राप्त दुःख
में भी सुखी रह सकें। हमारे पास भले ही कुछ न मिले, लोग हमें कंगाल कहते
हों तो भी हम अपने आपको महाश्रीमंत मान सकें! क्योंकि, लोग
जिन्हें श्रीमंत कहते हैं,
उन्हें हमने महाकंगाल के रूप में भी देखा है।’
श्रीमंतों में कैसे-कैसे कंगाल होते हैं, यह आपने नहीं देखा है क्या? परन्तु, आपको
भी वैसे श्रीमंत होने का मनोरथ है, इसलिए वह कंगालियत आपको दिखाई
नहीं देती। बोधि को प्राप्त व्यक्ति तो कहते हैं कि ये बेचारे जानते नहीं कि सच्ची
श्रीमंताई क्या है?
इसलिए पैसे वालों को श्रीमंत कहते हैं। लेकिन, मैं
मानता हूं कि मेरी श्रीमंताई अद्वितीय है, लोकोत्तर है। मुझे फुटपाथ पर
सोने का समय आ जाए तो भी,
ये श्रीमंत बंगलों में और पलंगों पर सोते हुए भी, जिस
समाधि सुख का अनुभव नहीं कर सकते, उस समाधि सुख का अनुभव मैं फुटपाथ पर सोकर
भी कर सकता हूं। मुझे मालूम है कि फुटपाथ पर सोने वाला भी मरता है और बंगले में
सोने वाला भी मरता है। उसके शरीर को जलाने के लिए लकडी की अग्नि चाहिए और फुटपाथ
पर सोने वाले के शरीर को जलाने के लिए भी लकडी की अग्नि चाहिए।’ यह
बात यदि आपके हृदय में जंच जाए तो बेडा पार हो जाए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें